दिल्ली फतेह के बाद भाजपा की निगाह पंजाब पर टिकी - Punjab Kesari
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दिल्ली फतेह के बाद भाजपा की निगाह पंजाब पर टिकी

दिल्ली में BJP को मिली जीत के बाद अब भाजपा की निगाह सीधे पंजाब पर टिकने लगी है।

दिल्ली में भाजपा को मिली शानदार जीत ने भाजपा नेताओं के हौंसले बुलंद कर दिये हैं और अब उनकी निगाह सीधे तौर पर पंजाब पर टिकने लगी है। ऐसा होना स्वभाविक भी है क्योंकि जिस प्रकार पंजाबियों और खासकर सिखों के द्वारा आम आदमी पार्टी से मुख मोड़कर दिल्ली में पुनः भाजपा को समर्थन दिया गया है उससे उन्हें लगने लगा है कि पंजाब में भी उन्हें समर्थन मिल सकता है। सिख नेता महेन्द्रपाल सिंह चड्ढा जो कि रेखा गुप्ता के विधानसभा क्षेत्र शालीमार बाग से हैं और रेखा की जीत में उनका अहम योगदान भी है जिन्होंने सिखों को उन्हें वोट देने के लिए प्रेरित किया। वह मानते हैं भाजपा ने नई सरकार में मनजिन्दर सिंह सिरसा को सिख और आशीष सूद को पंजाबी कोटे से मंत्रिमण्डल में शामिल कर साबित कर दिया है कि केवल भाजपा ही है जो मौजूदा समय में उन्हें सम्मान दे सकती है।

ऐसा शायद इसलिए भी किया गया है क्योंकि अब भाजपा 2027 में होने वाले पंजाब चुनावों में विजय हासिल करने के ख्वाब संजोने लगी है। मंत्री पद की शपथ लेने के तुरन्त बाद मनजिन्दर सिंह सिरसा श्री दरबार साहिब नतमस्तक होने पहुंचे और उन्होंने मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए इस बात के संकेत भी दे दिये कि आगामी विधानसभा चुनाव भाजपा अपने दम पर बिना अकाली दल के साथ के लड़ेगी हालांकि उन्होंने तुरन्त इसे अपनी निजी राय बता दिया। मगर उनके बयान ने अकाली नेताओं की उम्मीदों पर पानी जरूर फेर दिया है जो अभी भी भाजपा के साथ गठबंधन के ख्वाब देख रहे हैं क्योंकि उन्हें इस बात की जानकारी है कि वह अपनी पंथक जमीन खो चुके हैं और बिना भाजपा के उनकी जीत असंभव है। उधर पंजाब भाजपा के नेता पहले ही लम्बे समय से अकाली दल से गठजोड़ समाप्त कर अपने दम पर चुनाव लड़ने के लिए जमीन तैयार करते आ रहे हैं और शहरों के बाद उन्हें गांवों में भी सफलता मिलने की उम्मीद लग रही है क्योंकि पंजाब के लोग भी आम आदमी पार्टी के हाथों स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। अकाली दल से पंथक मुखौटा लगभग उतर चुका है जिसके चलते हो सकता है कि एक बार वह भाजपा पर भरोसा कर लें।

सिरसा ने पंजाबियों का सम्मान बढ़ाया आज के माहौल में जब लोग खासकर पंजाबी अपनी मातृ भाषा से दूर होते चले जा रहे हैं, घरों में भी बच्चों के साथ अंग्रेजी या फिर हिन्दी में बातचीत की जाती है ऐसे में मनजिन्दर सिंह सिरसा ने मंत्री पद की शपथ अपनी मातृ भाषा में लेकर देशभर के पंजाबियों को नसीहत दी है कि मातृ भाषा दिवस मनाने का लाभ तभी है अगर हम बातचीत के दौरान बिना किसी झिझक के अपनी मातृ भाषा को बोलचाल का माध्यम बनायें। जहां तक हो सके पत्राचार भी उसी में करें तभी भाषा का प्रचार-प्रसार संभव है। सिरसा की इस पहल का पंजाबी हैल्पलाईन सहित अन्य संस्थाएं जो पंजाबी भाषा के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देती हैं उनके द्वारा स्वागत किया गया है। सिरसा के शपथ ग्रहण समारोह में उनके परिवार के संग मौजूद रहे दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी महासचिव जगदीप सिंह काहलो, धर्म प्रचार मुखी जसप्रीत सिंह करमसर ने भी इसका स्वागत करते हुए कहा कि पिछले 12 सालों से खासकर दिल्ली में पंजाबी भाषा को जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई इस सरकार में हो जाएगी और पंजाबियों को फिर से उनका बनता सम्मान मिल सकेगा।

पंजाबी हैल्पलाईन के मुखी प्रकाश सिंह गिल ने बताया कि पंजाबी भाषा में बच्चों के लिए सरकारी नौकरियों के भी विकल्प हैं पर शायद इसकी जानकारी उन तक सही ढंग से नहीं पहुंच पाती जिसके चलते बच्चे अक्सर विषयों का चयन करते हुए पंजाबी भाषा को दरकिनार कर देते हैं। मगर मौजूदा सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह इसका अच्छे से प्रचार कर बच्चों तक इसकी जानकारी पहुंचायेंगे। दिल्ली में हुई पंथक कनवैंशन से गर्माई सिख सियासत दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी द्वारा दिल्ली के गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब के लख्खीशाह बंजारा हाल में पंथक कनवैंशन बुलाई गई जिसमें देश भर से सिख समाज की धार्मिक एवं सामाजिक श​ख्सियतों ने हाजरी भरकर पंथक मसलों पर अपने विचार व्यक्त किए। मंच से सिंह साहिब ज्ञानी हरप्रीत सिंह की बर्खास्ती को गलत बताते हुए उन्हें मौजूदा जत्थेदार के रूप में ही सम्मान देने सहित अन्य कई प्रस्ताव पारित किए गये जिसे मौजूद संगत ने हाथ खड़े करके मंजूरी भी दी।

ज्यादातर वक्ताओं के द्वारा शिरोम​णी अकाली दल और बादल परिवार को कौमी दुविधाओं, गुरु ग्रन्थ साहिब की बेअदबी और श्री अकाल तख्त साहिब की मान मर्यादा में गिरावट का जिम्मेवार ठहराते हुए समूचे पंथ को एकजुट होने की अपील भी की गई। मंच से दिल्ली कमेटी अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका और महासचिव जगदीप सिंह काहलो ने साफ किया कि जैसे दिल्ली के सिखों ने बादल परिवार द्वारा किए जा रहे पंथ विरोधी कार्यों के चलते उनसे मुंह मोड़ लिया है उसी प्रकार देश भर खासकर पंजाब के सिखों को अब समझना होगा और पंथ विरोधी ताकतों को मुंहतोड़ जवाब देना होगा। जिनके लिए श्री अकाल तख्त साहिब की मान मर्यादा, जत्थेदार साहिबान की पदवी कोई मायने नहीं रखती, जो पूरी तरह से श्री अकाल तख्त साहिब से भगौड़े हो चुके हैं उनसे शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी को मुक्त करवाना होगा तभी कौम में चढ़दीकला बहाल की जा सकती है।

श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा शिरोमणी अकाली दल पंथ की नुमाईंदा जमात थी और अनेक शहादतों के बाद पंथ हितों पर पहरा देने, सरकारों से सिखों को उनके हक दिलाने के लिए उसकी स्थापना हुई थी। उन्होंने सरना ब्रदर्स पर भी शब्दी वार किए जिसके चलते अगले ही दिन सः परमजीत सिंह सरना और मनजीत सिंह जीके ने चंडीगढ़ में प्रैस कांफ्रैंस कर सीधे तौर पर ज्ञानी हरप्रीत सिंह पर प्रहार किए। ननकाणा साहिब साका सिख आज भी नहीं भूले ननकाणा साहिब का साका जो कि 20 फरवरी 1921 को हुआ। ननकाणा साहिब जो कि गुरु नानक देव जी का जन्म स्थान है। इस स्थान पर ब्रिटिश हुकूमत ने सिखों को कमज़ोर करने के लिए महंत नरैणू का कब्ज़ा करवा दिया था कयोंकि अंग्रेज़ों को पता चल गया था कि सिखों को शक्ति गुरुघर से मिलती है इसलिए उन्होंने नरैणू महन्त से हर वह कुकर्म करवाए जिससे गुरुघर की मर्यादा भंग हो।

शराब के दौर चलने लगे, वैश्याओं के नाच होने लगे। 20 फरवरी 1921 को भाई लक्ष्मण सिंह धारोवाल की अगुवाई में लगभग 170 के करीब सिखों का जत्था गुरुद्वारा ननकाणा साहिब में दाखिल हुआ और महंत नरैणू से गुरुघर को खाली करवाने के लिए अपील की गई। पाठ पूजा कर रहे सिखों पर महंत के गुंडों ने ताबड़तोड़ गोलियां चलाईं, गंडासी व तेज़ धार हथियारों से उनके शरीर के अंगों को काट-काट कर उन पर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी गई। भाई लक्ष्मण सिंह को बांधकर जिन्दा जला दिया और इसी आग में 13 वर्षीय एक बालक को भी फेंककर जिन्दा जलाया गया। अगली सुबह 21 फरवरी को स. करतार सिंह अपना जत्था लेकर ननकाणा साहिब पहुंच गये। देश भर से सिखों के जत्थे ननकाणा साहिब की ओर कूच करने लगे। आखिरकार सिखों के आक्रोश के आगे ब्रिटिश हुकूमत को झुकना पड़ा। 23 फरवरी को सभी शहीदों का संस्कार किया गया। महंत नरैणू उर्फ नारायण दास और उसके साथियों पर मुकद्दमा चलाया गया। सेशन जज ने महंत और उसके साथियों को सज़ा सुनाई। उसके बाद गुरुद्वारा सुधार लहर के तहत कुर्बानियां देकर गुरुद्वारों का प्रबन्ध महंतों के कब्ज़े से आज़ाद करवाया।

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