'अभिमन्यु' : परीक्षा तो देनी होगी - Punjab Kesari
Girl in a jacket

‘अभिमन्यु’ : परीक्षा तो देनी होगी

NULL

शिक्षा के अधिकार कानून 2009 के तहत यह प्रावधान किया गया था कि आठवीं कक्षा तक किसी भी बच्चे को फेल नहीं किया जाएगा। इस नीति को लेकर काफी बहस हुई। NO Fail Policy मूलत: अमेरिका की No Child left behind की नकल है जिसकी वहां भी काफी आलोचना हुई थी। भारत में नीतियां तो बना दी जाती हैं लेकिन चुनौतियों को कभी गम्भीरता से नहीं लिया जाता। आज स्कूलों में छात्रों की शिक्षा का जो स्तर है उसके लिए नीतियां और निगरानी का अभाव जिम्मेदार है। बिना पर्याप्त न्यूनतम ज्ञान के आगे बढ़ाने से छात्र आगे की कक्षाओं में असफल होते हैं, परिणामस्वरूप पढ़ाई छोड़ देते हैं। जब से कक्षा आठवीं तक फेल न करने की नीति लागू हुई है तब से नौवीं कक्षा का परिणाम तथा स्कूल छोड़ते छात्रों की बढ़ती संख्या इसका उदाहरण है।

शिक्षाविद् इसके लिए अभिमन्यु का उदाहरण देते हैं जिसने मां के गर्भ में चक्रव्यूह में प्रवेश करना तो सीख लिया लेकिन बाहर आने का ज्ञान प्राप्त नहीं कर सका। अधूरी शिक्षा के परिणाम से हम सब वाकिफ हैं कि किस तरह अभिमन्यु को युद्धभूमि में जान देनी पड़ी। काफी दिनों से यह मांग की जा रही थी कि आठवीं कक्षा तक किसी को भी फेल नहीं करने का प्रावधान खत्म किया जाए क्योंकि फेल नहीं होने के डर से बच्चे पढ़ते ही नहीं हैं। यह मांग भी उठी कि बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए पहले जैसी नीति बनाई जाए। अभिभावक, शिक्षक, बुद्धिजीवी भी बेरोकटोक पास प्रणाली को शिक्षा में गिरावट का कारण मानते हैं। भारतीय प्राचीनतम शिक्षा व्यवस्था में उत्तीर्ण और अनुत्तीर्ण जैसी प्रणाली का उल्लेख कहीं नहीं मिलता। यहां तक कि लिखित परीक्षा की बजाय व्यावहारिक कौशल परीक्षण के मूल्यांकन पर ही जोर दिए जाने के तमाम उदाहरण परिलक्षित होते हैं।

तब ऋषि, मुनि और शिक्षक बच्चों को जवाबदेह बनाते थे लेकिन आज के शिक्षक क्या कर रहे हैं, इस पर किसी ने विचार ही नहीं किया। अगर कोई छात्र कक्षा में अनिवार्य उपस्थिति से ज्यादा उपस्थिति दर्ज कराता है और उसके बावजूद भी वह खास विषय में अच्छा नहीं सीख पाता तो उसे फेल करने की बजाय इस बात की चिन्ता अधिक करनी चाहिए कि वह क्यों नहीं सीख पा रहा। खैर, फेल न करने की नीति में सारा ठीकरा छात्रों के सिर फोड़कर स्कूल, शिक्षक, अभिभावक भी अपनी जवाबदेही से पल्ला झाड़ लेते हैं जबकि सच्चाई तो यह है कि प्राथमिक स्तर पर किसी बच्चे की उन्नति-अवनति में सामूहिक जवाबदेही होती है। न तो आज आदर्श शिक्षक हैं और न ही आदर्श छात्र। आयातित शिक्षा पद्धतियों में उलझी भारतीय शिक्षा प्रणाली अपने मूल तत्व को पहचानने में काफी नाकाम साबित हुई है।

केन्द्र सरकार ने सत्ता में आते ही नई शिक्षा नीति का प्रारूप तैयार करने की योजना पर अमल शुरू किया और सुब्रह्मण्यम समिति का गठन किया। समिति ने 200 पन्नों की रिपोर्ट में शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए सुझाव दिए। उसने प्राथमिक से लेकर उच्चतर शिक्षा तक के स्तर में काफी कमियां पाई थीं। समिति ने सिफारिश की थी कि फेल नहीं करने की नीति की समीक्षा की जानी चाहिए। समिति का सुझाव था कि फेल न करने की नीति केवल पांचवीं कक्षा तक हो। उसके बाद परीक्षाएं शुरू की जाएं। एक बार छात्र पास नहीं होता तो परीक्षा देने के लिए उसे दो मौके और दिए जाएं। समिति ने यूजीसी और एआईसीटीई को शामिल कर शिक्षा के लिए नियामक तंत्र बनाने की भी सिफारिश की थी। अब केन्द्रीय मंत्रिमंडल आठवीं कक्षा तक फेल न करने की नीति को खत्म करने की तैयारी में है। उसने इस सम्बन्ध में प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। सरकार इस बारे में शीघ्र बदलाव लाएगी।

एनसीईआरटी के अध्ययन और आम सर्वेक्षणों में बार-बार यह बात सामने आ रही थी कि आठवीं कक्षा के बच्चे भी अपना नाम और विषयों को सही नहीं लिख पाते। पांचवीं का बच्चा दूसरी कक्षा के गणित का सवाल नहीं कर पा रहा। सातवीं कक्षा का बच्चा तीसरी क्लास की किताब भी नहीं पढ़ सकता। कारण स्पष्ट है कि जब अगली क्लास में जाने से पहले कोई परीक्षा ही नहीं तो पढऩे-लिखने की समझ आएगी कैसे? देशभर के शिक्षा मंत्रियों ने इस पर विचार-विमर्श किया।

केन्द्र सरकार ने नीति को खत्म करने का फैसला किया है तो यह अच्छी बात है। वैसे तो बच्चों को पढ़ाई की मुख्यधारा में शामिल करने और उन्हें लगातार प्रोत्साहित करने के लिए फेल न करने की नीति का प्रयोग बुरा नहीं था लेकिन जब इस प्रयोग की सीमाएं और उसके दुष्परिणाम सामने आ गए तो बीमारी का उपचार भी जरूरी है। अगर बच्चे पांचवीं या आठवीं में परीक्षा देना सीख जाएंगे तो फिर दसवीं या बारहवीं की परीक्षा उनके लिए कोई आतंक पैदा नहीं करेगी। आजकल तो प्रवेश परीक्षाएं भी हैं। सवाल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का भी है। नई शिक्षा नीति में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के मानदण्ड तय करने होंगे तथा शिक्षकों की जवाबदेही भी तय करनी होगी। छोटे अभिमन्यु शिक्षा के चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं। अभिमन्यु (बच्चों) को परीक्षा तो देनी ही होगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

nineteen − 4 =

Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।