राम मन्दिर से आगे का सफर - Punjab Kesari
Girl in a jacket

राम मन्दिर से आगे का सफर

NULL

सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण का सम्बन्ध राष्ट्रीय विकास की उस धारा से जुड़ा हुआ है जिसे हम साकार करके भारत के आगे बढ़ने के सबूत के तौर पर पेश कर सकते हैं? यदि एेसा होता तो 1971 में धर्मांध पाकिस्तान के दो टुकड़े न हुए होते और पूर्वी पाकिस्तान नए धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बंगलादेश के रूप में दुनिया के नक्शे पर न आता। आगे बढ़ना व्यक्ति की प्रकृति होती है क्योंकि एेसा करके ही वह अपने विकास का सबूत देता है। भाजपा नेता श्री लालकृष्ण अडवानी ने जब 1986 के करीब राजधानी समेत देश के प्रमुख शहरों की राम लीलाओं के मंचों पर जाकर यह कहना शुरू किया था कि ‘मन्दिर वहीं बनाएंगे जहां राम का जन्म हुआ था’ तो उन्हें यह उम्मीद नहीं थी कि उनके इस अभियान को भारी जनसमर्थन मिलेगा।

यह तथ्य उन्होंने स्वयं उस लिब्राहन कमीशन के समक्ष स्वीकार किया था जिसने अयोध्या में बाबरी विध्वंस की जांच की थी। उन्होंने मस्जिद के ढहाये जाने को स्वयं भारी दुख का विषय भी बताया था परन्तु इसके बाद देश की राजनीति ने जो स्वरूप लिया उसने हिन्दू-मुसलमान के आधार पर मतदाताओं को बांट डाला और इसका भरपूर लाभ भाजपा को इसीलिए मिला कि वह मन्दिर निर्माण के पक्ष में लगातार अलख जगाये हुए थी किन्तु भाजपा के नेता भी यह भलीभांति जानते थे कि अयोध्या में विवादित स्थल पर तभी मन्दिर का निर्माण निर्बाध रूप से किया जा सकता है जबकि पहले बाबरी विध्वंस के मामले की जांच पूरी हो जाए और इसके लिए जिम्मेदार लोगों को सजा मिल जाए। यही वजह थी कि 1998 से 2004 तक केन्द्र में भाजपा नीत अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के सत्ता पर काबिज रहने के बावजूद यह मामला न्यायालयों में ही खिंचता रहा जिसमें उत्तर प्रदेश की सरकार भी एक पक्ष थी परन्तु इसके बाद इस मामले में नाटकीय मोड़ आते रहे और निचली अदालत से बरी हो जाने के बावजूद श्री अडवानी के खिलाफ पुनः उच्च अदालत में नए सिरे से पुराना मुकद्दमा खोल दिया गया मगर 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय फैसला सुना चुका था कि अयोध्या के विवादित स्थल को तीन भागों में बांट दिया जाए जिसमें एक भाग भगवान राम के बाल स्वरूप का हो, दूसरा निर्मोही अखाड़े का और तीसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड का परन्तु इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दे दी गई जहां सुनवाई जारी है। अतः स्पष्ट है कि न्यायिक प्रक्रिया के बीच सरकार किसी प्रकार की दखलन्दाजी नहीं कर सकती है।

हिन्दू समाज की राम के प्रति आस्था है। राम जन्मभूमि के प्रति इस आस्था का अनुवाद श्री लालकृष्ण अडवानी की राजनीति का वह अंग ही कहा जाएगा जिसके तहत उन्होंने अपनी पार्टी के जनाधार का विस्तार धार्मिक प्रतीक को पकड़ कर किया था परन्तु इसकी सीमाएं थीं जो 2004 के लोकसभा चुनावों में परिलक्षित हो गई थीं जिसमें आम जनता ने भाजपा के मुकाबले कांग्रेस पार्टी को वरीयता देकर केन्द्र में सत्ता पलट कर दिया। इसका राजनीतिक अर्थ यही निकला कि हम 1999 में जहां थे उससे आगे बढ़ने की प्रक्रिया में आए और हमने सामाजिक व आर्थिक मुद्दों पर सोचना शुरू किया और 2009 के लोकसभा चुनावों में अमेरिका के साथ हुआ परमाणु करार हमारे राजनीतिक पटल के केन्द्र में रहा।

2014 के चुनाव में भ्रष्टाचार व अल्पसंख्यक समाज की चाटुकारिता प्रमुख मुद्दा बनकर उभरा और हमने इसके सापेक्ष अपनी पसन्द का चुनाव किया। यदि राजनीति पीछे ही जाने का नाम होती तो स्वतन्त्र भारत में वीर सावरकर की हिन्दू महासभा से लेकर स्वामी करपात्री जी महाराज की राम राज्य परिषद का आज कहीं नामोनिशान होना चाहिए था मगर इन पार्टियों का आज कोई नाम लेवा तक नहीं बचा है। यही हाल मुस्लिम लीग का भी है। मुस्लिम कट्टरवाद फैलाने वाली आज जो भी हाशिये पर राजनीतिक पार्टियां दिखाई पड़ती हैं वे केवल हिन्दू उग्रवाद को बढ़ाने में ही सहायक हो रही हैं क्यों​िक भारतीय मुसलमान इन पार्टियों को अपने भारतीय अस्तित्व के लिए खतरनाक मानते हैं। बेशक समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी जैसे संगठन इनमें भाजपा का खौफ दिखा कर अपनी गोटी चलते रहते हैं जिससे भाजपा के विरुद्ध मतों की गोलबन्दी का उन्हें अधिकाधिक लाभ मिल सके परन्तु उनका लक्ष्य मुस्लिम समाज के विकास का न होकर उन्हें यथास्थिति में रखने का ही रहा हैं परन्तु भारत की किसी भी प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी का लक्ष्य हिन्दू समाज को दकियानूस बनाये रखकर यथास्थिति में रखने का नहीं हो सकता क्योंकि एेसा होते ही उसके राजनीतिक तेवर ढीले पड़ जाएंगे। इन तेवरों को धार्मिक साधुओं या धर्म गुरुओं की भागीदारी और अधिक ढीला बनाएगी।

बंगलादेश का जिक्र बार-बार इसीलिए हो रहा है कि इस नवोदित देश में जिस तरह इस्लामी जेहादी या कट्टरपंथी ताकतें जिस तरह राजनीति को प्रभावित करने या उसे धार्मिक कलेवर में डालने की कोशिश कर रही हैं उतना ही अधिक विरोध इस देश की युवा पीढ़ी में हो रहा है। इस देश की वार्षिक वृद्धि दर यदि आज सात प्रतिशत के करीब पहुंची है तो उसका मुख्य कारण यही है कि इसने इस्लामी धार्मिक गुरुओं की भूमिका को धर्म तक सीमित रखने में सफलता हासिल की है जबकि इसके समानान्तर पाकिस्तान आज भीख का कटोरा लेकर दर-दर की ठोकरें खा रहा है और भारत विरोध काे हिन्दू विरोध का पर्याय मान रहा है।

अतः अयोध्या में राम मन्दिर का निर्माण मुस्लिम नागरिकों की सहर्ष भागीदारी के साथ उसी प्रकार होना चाहिए जिस प्रकार अमृतसर में गुरु रामदास महाराज ने एक हिन्दू और एक मुस्लिम शिष्य से ‘हरमन्दर साहब’ की नींव डलवाई थी। भारत के मुसलमान तो एेसे भारतीय हैं जिनकी शिरकत के बिना किसी भी हिन्दू त्यौहार का आयोजन नहीं हो पाता। यहां तक कि हिन्दू दूल्हा घोड़ी पर भी मुस्लिम सईस की मदद से ही चढ़ता है। अतः इस महान भारत की सांस्कृतिक राष्ट्रीयता का हमें मान भी रखना है और शान भी रखनी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।