आज तो मेरी कलम भी मेरा साथ नहीं दे रही क्योंकि ऐसे-ऐसे लोग देखते-देखते जा रहे हैं जिनकी आदरणीय रोमेश जी (पिता ससुर) जी के साथ घनिष्ठता थी। यह साल ही कुछ ऐसा लग रहा है। पहले केरल में आपदा, फिर अटल बिहारी वाजपेयी जी, बलरामजी दास टण्डन जी का जाना, रोमेश जी के घनिष्ठ मित्र मदन लाल खुराना जी के जवान पुत्र का उनके होते हुए चले जाना आैर अब कुलदीप नैयर जी। अभी आदरणीय कुलदीप नैयर जी अपनी अच्छी उम्र (94) में एक्टिव रहते हुए गए परन्तु कहते हैं न कि मां-बाप या अपने चहेते आदरणीय किसी भी उम्र में जाएं, उनका बिछोड़ा सहना बहुत ही मुश्किल होता है आैर खासकर उन लोगों का जिनका आपकी जिन्दगी में विशेष स्थान होता है। मुझे आज भी याद है जब मेरी नई-नई शादी हुई तो मैं आैर अश्विनी जी आदरणीय रोमेश जी और सासु मां सुदर्शन चोपड़ा जी के साथ दिल्ली आए तो सबसे पहले मेरा खाना कुलदीप नैयर जी के घर पर था।
उन्होंने और उनकी पत्नी ने मुझे बहुत स्नेह दिया, वह कभी नहीं भूलता और रात का खाना मदन लाल खुराना जी के घर पर था। दोनों की पत्नियों से मेरा आज के दिन भी बहुत स्नेह और प्यार है। मेरी जिन्दगी में यह 3 ‘डॉल्स’ हैं जिन्हें मैं बहुत प्यार करती हूं- श्रीमती कुलदीप नैयर, श्रीमती विमला साहनी (केदार नाथ साहनी जी की पत्नी) और श्रीमती राज खुराना (मदन लाल खुराना जी की पत्नी) और वे भी मेरा कोई भी बुजुर्गों का समारोह हो तो हमेशा मेरे साथ होती हैं। मुझे प्यार, हौसला, आशीर्वाद देती हैं। श्रीमती कुलदीप नैयर ने तो मुझे भारतीय ग्रामीण महिला संघ की जिम्मेदार सदस्या भी बनवाया जिसकी मैं एक्टिव सदस्य हूं। कोई भी पारिवारिक बात हो, सुख-दुःख हो, कुलदीप नैयर जी आैर उनकी पत्नी ने हमेशा हमारा साथ दिया, मार्गदर्शन किया। हमने जब जे.आर. मीडिया इंस्टीट्यूट (जगत नारायण रोमेश चन्द्र) खोला तो वे वहां भी आशीर्वाद देने आए और उन्होंने बहुत अच्छा भाषण भी दिया आैर लाला जी आैर रोमेश जी को याद भी किया।
एक पत्रकार भले ही बुद्धिजीवी कहलाता है परन्तु वह सचमुच के बुद्धि के स्वामी थे और लाला जी, रोमेश जी का साया उठने के बाद हमेशा उन्होंने घर के बड़ों की तरह बात की और अक्सर वरिष्ठ नागरिक क्लब के समारोहों में शामिल हुए आैर कहते थे कि किरण बेटा तेरा फंक्शन लम्बा हो जाता है। बैठना बड़ा मुश्किल लगता है परन्तु इतना रोचक होता है कि उठने को मन नहीं करता। सच में वह निर्भीक आर्टिकल लिखने वाले एक जांबाज पत्रकार आैर संस्कारी इन्सान थे। उनके दोनों बेटे, बहुओं से हमारा बहुत प्रेम है। चाहे वो राज्यसभा सांसद रहे हों या फिर ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त, वह अकेले ऐसे इन्सान थे जो पत्रकारिता का धर्म निभाते हुए भारत आैर पाकिस्तान के तनावपूर्ण संबंधाें को खत्म करना चाहते थे।
कई बार वो अपने आर्टिकल में ऐसी बातें लिख जाते थे जो अक्सर लोगों को पसन्द नहीं होती थीं। मुझे याद है एक बहुत बड़े इन्सान ने अश्विनी जी को बुलाकर कहा कि कभी आपने कुलदीप नैयर जी के आर्टिकल को चैक किया वो क्या-क्या लिख देते हैं तो अश्विनी जी ने उनको एक ही जवाब दिया कि हमारा अखबार लोकतांत्रिकक परंपराओं से चलता है, आजाद और निर्भीक विचारधारा पर आधारित है जहां सभी पत्रकारोंं और स्तंभकारों को लिखने की पूरी आजादी है। चाहे मैं भाजपा का एक सांसद हूं पर जब पैन उठाता हूं तो निश्पक्ष पत्रकारिता की भूमिका निभाता हूं और कुलदीप नैयर जी एक तो मेरे पिता तुल्य हैं मेरे पिता जी के घनिष्ठ मित्र रहे हैं, मैं उनकी चैकिंग कर ही नहीं सकता। उनका आर्टिकल हमेशा आंख बन्द करके लगता हूं। कभी हम उनसे नहीं पूछते। दूसरा वैसे भी सारा अखबार खबरें छापने से पहले नहीं पढ़ा जा सकता आैर सारे पत्रकार-रिपोर्टर अपनी लेखनी के प्रूफ के साथ जिम्मेदार होते हैं। दो पैनल बनाए हुए हैं, वो जरूर हर खबर काे देखते हैं परन्तु इनका आर्टिकल तो उन्हें भी देखने की इजाजत नहीं।
अश्विनी जी के उनके साथ बहुत ही भावुक रिश्ते रहे हैं क्योंकि अश्विनी जी जब पैदा हुए तो उनके मुंह में छाले थे। वह बीमार पड़ गए। डाक्टरों ने जवाब दे दिया तब उनके पिताजी बच्चों के प्रसिद्ध डाक्टर डा. बूटा सिंह नैयर ने इनका इलाज किया, इन्हें बचाया आैर मां को बताया कि कैसे इनको सिर्फ गाय का दूध ही कॉटन के साथ थोड़ा-थोड़ा कर पिलाना है (तभी अश्विनी जी का गऊ माता से प्रेम भी बहुत है)। मम्मी जी के अनुसार उस समय स्टरलाइजेशन का समय नहीं था परन्तु उन्होंने मम्मी को सिखाया कि कैसे अश्विनी के लिए हर इस्तेमाल बर्तन पहले पानी में उबाल कर स्टरलाइज करना है। ऐसी भावुक बातें अश्विनी जी की उनके साथ जुड़ी हैं। आज बहुत ही महसूस हो रहा कि हमें सामाजिक, राजनीतिक आैर धार्मिक कार्यक्रमों के लिए हमेशा मार्गदर्शन देने वाली हस्ती अब हमारे बीच नहीं रही लेकिन उनके बताए-दिखाए रास्ते पर हम हमेशा चलते हुए उन्हें याद करते रहेंगे। प्रभु से यही प्रार्थना है उन्हें अपने चरणों में स्थान दें और मेरी प्यारी आंटी (मां जैसी) जिनके बारे में मैंने अपनी कॉफी टेबल बुक ‘बेटियों’ में भी लिखा है, श्रीमती भारती नैयर जी को यह ताकत दें कि वह कभी न पूरी होने वाली जुदाई को सहन करने की हिम्मत दें। मैं अपने और सारे पंजाब केसरी पिरवार आैर साथी पत्रकार बिरादरी की तरफ से उनको सच्चे मन से श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं।