लोकतंत्र के सर्वोच्च मंदिर संसद पर 22 साल पहले हुए हमले की बरसी पर लोकसभा में हुए स्मोक अटैक से न केवल संसद सदस्य बल्कि पूरा राष्ट्र स्तब्ध है। लोकसभा की दर्शक दीर्घा से दो युवकों के सदन में कूदने और नारे लगाते हुए जूतों में छिपा कर लाई गई रंगीन गैस फैलाने से फैली अफरातफरी को पूरे देश ने देखा। 2001 के आतंकी हमले के बाद संसद की सुरक्षा व्यवस्था में अमूल चूल परिवर्तन किया गया था लेकिन इन युवकों ने संसद की आंतरिक सुरक्षा की धज्जियां उड़ा दीं। आप लाख तर्क दें लेकिन यह सुरक्षा तंत्र में बहुत बड़ी चूक का गम्भीर मामला है। संसद की सुरक्षा में सेंध लगाने वाले चारों आरोपियों के संबंध में अब कहानियां छन-छन कर बाहर आ रही हैं। जांच के दौरान चारों की सोशल मीडिया एक्टिविटी और हिस्ट्री पर फोकस किया जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि आरोपियों ने संसद के बाहर और अन्दर घटना को अंजाम देने से पहले रेकी की थी। चारों आरोपी सोशल मीडिया पर भगत सिंह फैन क्लब नाम के एक पेज से जुड़े बताए जाते हं
सदन में दर्शक दीर्घा से कूदने वाले युवक सागर और मनोरंजन बेरोजगारी से परेशान बताए जाते हैं। सागर मैसूर की एक यूूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग कर चुका है जबकि मनोरंजन मैसूर का ही रहने वाला है। संसद से बाहर परिसर में कलर फ्रैकर्स से धुआं फैलाने वाली युवती नीलम हरियाणा के गांव की उच्च शिक्षित युवती है और वह भी बेरोगारी से खासी हताश बताई गई है। अपनी हताशा को प्रदर्शित करने के लिए या युवाओं में व्यवस्था के प्रति आक्रोश को व्यक्त करने के लिए और सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए जो उन्होंने हंगामा खड़ा किया उसे किसी भी दृष्टि से उचित करार नहीं दिया जा सकता। इन चारों के परिवार वालों को भी यह समझ नहीं आ रहा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया। अब इनके मास्टर माइंड की तलाश की जा रही है।
अब सवाल यही उठ रहा है कि अगर इनके पास कोई और घातक वस्तु होती तो परिणाम भयंकर हो सकते थे। नई संसद को खासतौर पर पूरी तरह आधुनिक और डिजीटल तकनीकों से लैस किया गया है। नई संसद बनी तो इसके बारे में यह दावे किए गए कि सुरक्षा व्यवस्था की कई दीवारें हैं। इसमें कोई आपराधिक वारदात सम्भव नहीं है। आज तक दर्शक दीर्घा से सदन में कूदने की कोई घटना नहीं हुई। पुरानी संसद में दर्शक दीर्घा की सदन से ऊंचाई और दूरी बहुत ज्यादा थी जबकि नई संसद में दर्शक दीर्घा से सदन में लटक कर आना आसान है। सुरक्षा की दृष्टि से इस पहलू को भी देखा जाना चाहिए।
दर्शकों या अपने मेहमानों के लिए दर्शक दीर्घा का पास बनवाने के लिए सांसदों को सेंट्रलाइज्ड पास इश्यू सेल में आवेदन देना होता है। ये आवेदन फॉर्म जमा करवा कर या ऑनलाइन किया जा सकता है। नियमों के तहत एक सांसद ऐसे व्यक्ति के लिए विज़िटर पास का आवेदन कर सकता है जिसे वो व्यक्तिगत रूप से जानता हो। चुनिंदा मामलों में एक सांसद ऐसे व्यक्ति के लिए भी पास का आवेदन कर सकता है जिसका उनसे परिचय किसी ऐसे व्यक्ति ने कराया है जिसे वो सांसद व्यक्तिगत रूप से जानते हों। इन चुनिंदा मामलों में नियमों में सांसदों से ये उम्मीद की गई है कि वो आवेदन करते वक्त सावधानी बरतेंगे।
सांसदों को यह ध्यान रखने की सलाह दी जाती है उनके अनुरोध पर जारी किए गए कार्ड धारकों द्वारा दर्शक दीर्घाओं में होने वाली कोई भी अप्रिय घटना या अवांछनीय हरकत के लिए वो जिम्मेदार होंगे। संसद में कूदने वाले युवक सागर के पास संसद को जो विजिटर पास था वह मैसूर के भाजपा सांसद प्रताप सिन्हा की सिफारिश पर जारी किया गया था। जब पास जारी किया जाता है तो जिस व्यक्ति को पास दिया जा रहा है उसकी इंटेलीजैंस जांच होती है। संसद में आने वाले दर्शकों का कई जगह फिजीकल टैस्ट होता है। उन्हें मैटल डिटैक्टर से गुजरना होता है। दर्शक दीर्घा में भी सादे कपड़ों में सुरक्षाकर्मी बैठते हैं और बैठे हुए लोगों पर नजर रखते हैं। सुरक्षा के पूरे तंत्र को भेदकर कोई स्मोक स्प्रे कैसे ले जाए यह अपने आप में सवाल तो खड़े करता ही है। जो कुछ भी युवाओं ने किया निश्चित रूप से वह शहीद-ए-आजम भगत सिंह जैसी छवि नहीं बना पाएंगे। क्योंकि लोकतंत्र में ऐसी अराजकता को माफ नहीं किया जा सकता। यह घटना सबक लेने के लिए काफी है। इसके साथ ही जिम्मेदारी तय करने की भी जरूरत है कि सुरक्षा तंत्र में चूक क्यों और किस तरह हुई। सांसदों को भी यह सबक सीखने की जरूरत है कि वह पास सोच-समझ कर और आश्वस्त होने के बाद ही दें। संसद की आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी लोकसभा के अधीन काम करने वाली संसद सुरक्षा सेवा के अधीन होती है। अन्य बलों की उपस्थिति अलग से रहती है। संसद की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर नए सिरे से समीक्षा की जरूरत है ताकि भविष्य में इस तरह का कोई दूसरा मामला न हो।