फिलिस्तीनी मुद्दे पर भारत ने अपने रुख में सीधा परिवर्तन करके पूरी दुनिया को सन्देश दे दिया है कि जहां भी मानवता का सवाल आयेगा वहां भारत सभी आग्रहों से ऊपर उठ कर इंसानियत के पक्ष में खड़ा नजर आयेगा। इजराइल के साथ भी उसके अच्छे सम्बन्ध हो सकते हैं मगर वह फिलिस्तीन में मानवता की हत्या होते नहीं देख सकता। भारत का फिलिस्तीन के सम्बन्ध में शुरू से ही यह रुख रहा है कि अरब की इस धरती पर दो स्वतन्त्र व संप्रभु राष्ट्र फिलिस्तीन व इजराइल बनने चाहिए और इजराइल को यह शर्त स्वीकार करनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ की विशेष साधारण सभा की बैठक में भारत ने कल फिलिस्तीन में तुरन्त युद्ध विराम करने के बारे में लाये गये प्रस्ताव के पक्ष में वोट देकर अपनी यह मंशा साफ कर दी और अमेरिका समेत समस्त पश्चिमी जगत को यह सन्देश दिया कि वह प्रगाढ़ सम्बन्धों के नाम पर मानवता के पक्ष की अनदेखी नहीं कर सकता। इसके साथ ही भारत ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि चरमपंथी संगठन ‘हमास’ द्वारा बन्दी बनाये गये सभी बन्धक नागरिकों को तुरन्त रिहा किया जाये। इससे पूर्व राष्ट्र संघ के महासचिव ने इस संस्था की नियमावली के नियम 99 के तहत युद्ध विराम तुरन्त लागू करने का आह्वान किया था। राष्ट्रसंघ इस नियम को तभी लागू करता है जब राष्ट्रसंघ के मानवतावादी कानून का उल्लंघन किया जाता है। उस समय इजराइल ने राष्ट्रसंघ की कटु आलोचना करते हुए महासचिव पर भी अनर्गल आरोप लगाये थे। युद्ध विराम करने का जो प्रस्ताव राष्ट्रसंघ में रखा गया उसमें बन्धकों को भी तुरन्त छोड़ने की बात कही गई है परन्तु हमास संगठन का नाम नहीं लिया गया है।
193 सदस्यीय राष्ट्रंघ में युद्ध विराम के प्रस्ताव का 153 देशों ने समर्थन किया जबकि 10 ने इसका विरोध किया और 23 अनुपस्थित रहे। एशिया के लगभग सभी देशों ने प्रस्ताव के हक में वोट डाले जबकि अमेरिका, इजराइल व आस्ट्रिया समेत अन्य दस देशों ने विरोध में मत डाले। जो देश अनुपस्थित रहे उनमें ब्रिटेन, जर्मनी, इटली, हंगरी और यूक्रेन शामिल रहे। मिस्र की ओर से रखे गये युद्ध विराम प्रस्ताव में मांग की गई थी कि मानवता की रक्षार्थ तुरन्त युद्ध विराम किया जाये और अन्तर्राष्ट्रीय मानवीय कानून पर हस्ताक्षर करने वाले सभी देश अपनी जिम्मेदारी निभायें। विशेष कर तब जब आम नागरिकों का जीवन दांव पर हो। प्रस्ताव में सभी बन्धकों की बिना शर्त तुरन्त रिहाई की भी मांग की गई है और उन्हें भी सभी मानवीय सुविधाएं सुलभ कराने की वकालत की गई है। मगर इस प्रस्ताव में हमास का जिक्र कहीं नहीं है। आस्ट्रिया और अमेरिका चाहते थे कि प्रस्ताव में हमास जैसे कथित आतंकवादी संगठन का भी जिक्र हो। इसके लिए दोनों देश मिस्र के प्रस्ताव में संशोधन विधेयक भी लाये मगर दोनों को ही नियमानुसार दो-तिहाई बहुमत नहीं मिल सका।
आस्ट्रिया चाहता था कि प्रस्ताव में यह लिखा जाये कि उन बन्धकों को तुरन्त रिहा किया जाये जो हमास व अन्य आतंकी संगठनों ने बन्धक बनाये हैं जबकि अमेरिका चाहता था कि प्रस्ताव में एक नया उपबन्ध जोड़ा जाये जिसमें लिखा हो कि ‘यह सभा बिना संकोच के हमास द्वारा विगत 7 अक्तूबर को इजराइल में किये गये आतंकवादी हमले की एकमत से निन्दा करती है जिसमें नागरिकों को बन्धक बनाया गया था’। आस्ट्रिया के संशोधन को मात्र 89 देशों का समर्थन मिला और 61 ने इसका विरोध किया जबकि 20 अनुपस्थित रहे। अमेरिकी संशोधन के पक्ष में 84 मत आये जबकि विरोध में 62 और 25 अनुपस्थित रहे। हालांकि भारत ने इन दोनों संशोधनों के हक में भी वोट दिया परन्तु ये नियमानुसार पारित नहीं हो सके। इससे भी यही सिद्ध होता है कि भारत हर सूरत में गाजा क्षेत्र पर इजराइल द्वारा की जा रही बमबारी और नृशंस हत्याओं के दौर को रोकना चाहता है परन्तु इन प्रस्तावों के गिर जाने के बाद उसने प्रस्ताव के हक में वोट दिया। प्रस्ताव चूंकि मिस्र द्वारा रखा गया था और मिस्र के साथ भी भारत के एेतिहासिक व सांस्कृतिक रूप से प्रगाढ़ सम्बन्ध हैं अतः भारत का उसके प्रस्ताव के पक्ष में मत दिया जाना उल्लेखनीय माना जायेगा।
भारत फिलिस्तीन के मसले पर ऐसा सन्तुलन बनाये रखना चाहता है जिससे बदलती दुनिया की राजनीति में वह हर हालत में मानवता के पक्ष में खड़ा हुआ दिखाई दे। अभी तक 7 अक्तूबर को इजारइल पर किये गये हमास के हमले के बाद इजराइली कार्रवाई में 18 हजार से ज्यादा नागरिकों की मृत्यु हो चुकी है जिनमें आधे बच्चे व महिलाएं शामिल हैं। इजराइल आत्मरक्षा के नाम पर गाजा क्षेत्र में लगातार बमबारी कर रहा है । केवल बीच में चार दिनों के लिए उसने युद्ध विराम इसलिए किया था कि यदि हमास एक बन्धक छोड़ेगा तो वह अपनी जेलों में बन्द तीन फिलिस्तीनियों को छोड़ेगा जबकि इजराइल ने हजारों फिलिस्तनियों को जेलों में डाल रखा है। उसके द्वारा की जा रही बमबारी में गाजा के स्कूल, अस्पताल व स्वयंसेवी संस्थाओं के संगठन समेत कालेज व विश्वविद्यालय तक आ रहे हैं। भारत ने युद्ध विराम के हक में पहली बार वोट डाला है मगर इससे बहुत बड़ा संकेत गया है और वह यही हो सकता है कि भारत अपनी पुरानी नीति पर भी टिका हुआ है क्योंकि अक्तूबर महीने में जब राष्ट्रसंघ में ऐसा प्रस्ताव आया था तो वह अनुपस्थित हो गया था।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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