Uniform Civil Code: यूनिफॉर्म सिविल कोड कोई नया मुद्दा नहीं, शाह बानो मामले से हुई थी शुरुआत - Punjab Kesari
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Uniform Civil Code: यूनिफॉर्म सिविल कोड कोई नया मुद्दा नहीं, शाह बानो मामले से हुई थी शुरुआत

जैसे जैसे लोकसभा चुनाव की तारीख पास आ रही है वैसे वैसे UCC को मुद्दा सुर्खियों मे आता

जैसे जैसे लोकसभा चुनाव की तारीख पास आ रही है वैसे वैसे UCC को मुद्दा सुर्खियों मे आता जा रहा है। जबसे पीएम ने भोपाल के मंच से यूसीसी को लेकर अपनी बात कही है तबसे ही ये मामला और ज्यादा सुर्खियों में आ चुका है।  बता मंगलवार को पीएम मोदी ने भोपाल में जनता को संबोधित करते हुए यूसीसी पर बात की थी। बता दे  विपक्षी दलों ने भी इसे लेकर सवाल उठाना शुरू कर दिया है।  इन सबके बीच  आपको बता दें की यूसीसी कोई नया मुद्दा नहीं है
UCC कोई नया मुद्दा नहीं
कई दशकों से यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर बहस चल रही है और सुप्रीम कोर्ट भी कुछ मामलों में इसका जिक्र कर चुका है। जिनमें से सबसे पहला और बड़ा मामला शाह बानो का है। जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ को दरकिनार करते हुए हाईकोर्ट और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था।
 तीन तलाक को लेकर मोदी सरकार ने लिया था फैसला
बता दें की कुछ साल पहले मोदी सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए तीन तलाक को खत्म कर दिया था। तब  पीएम मोदी ने कहा था कि इससे मुस्लिम महिलाओं को सबसे बड़ी राहत मिली है। इसे यूनिफॉर्म सिविल कोड से जोड़कर देखा गया।  कहा गया कि सरकार की तरफ से यूसीसी की तरफ पहला कदम बढ़ा लिया गया है।  शाह बानो का मामला भी इसी ट्रिपल तलाक से जुड़ा हुआ था।  जिसकी सुनवाई के दौरान बाद में समान नागरिक संहिता का जिक्र सुनने को मिला था।
 शाह बानो केस के दौरान यूसीसी की चर्चा हुई थी
शाह बानो केस की बात करें तो  शाह बानो का कम उम्र में साल 1932 में निकाह हो गया था। उनका निकाह इंदौर के एक वकील मोहम्मद अहमद खान से हुआ।  कुछ साल तक सब कुछ ठीक चलता रहा और दोनों के पांच बच्चे भी हो गए। लेकिन निकाह के करीब 14 साल बाद अहमद खान ने दूसरा निकाह कर लिया।  
1978 में अहमद खान ने शाह बानो को दिया था तलाक
तब समझौते के तहत शाह बानो भी उनके साथ रहने लगी। लेकिन जब दोनों में खटपट शुरू हुई तो 1978 में अहमद खान ने शाह बानो को तीन बार तलाक  बोलकर तलाक दे दिया और घर से बेदखल कर दिया।  तब खान ने शाह बानो से वादा किया कि वो गुजारा भत्ता के तौर पर हर महीने उसे 200 रुपये देगा, लेकिन कुछ ही महीनों बाद वो इससे मुकर गया।
1981 में ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुचा था
गुजार भत्ता नहीं मिलने के बाद 62 साल की शाह बानो ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया और यहीं से शाह बानो का चर्चित मामला शुरू हुआ हुआ। बता दें  सुप्रीम कोर्ट में 1981 में ये मामला दो जजों की बेंच के सामने रखा गया थाष  लेकिन मामले गंभीरतो को देखते हुए मामला पांच जजों की संविधान पीठ को सौंप दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट में मामला चार साल तक चला
 सुप्रीम कोर्ट में मामला करीब चार साल तक चलता रहा।  शाह बानो के पति ने यहां भी तर्क दिया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत उसने दूसरी शादी की है और पहली पत्नी को गुजारा भत्ता देना उसके लिए अनिवार्य नहीं है। 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को सही करार देते हुए शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया था। इस दौरान  ही सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड की जरूरत का जिक्र किया था सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश में समान नागरिक संहिता की जरूरत महसूस होती है। इसलिए इसे लाना जरुरी हो जाता है।

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