सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली के मौजूदा और पूर्व मुख्यमंत्रियों आतिशी और अरविंद केजरीवाल के खिलाफ आपराधिक मानहानि मामले की कार्यवाही पर रोक लगाने के अपने अंतरिम आदेश को बढ़ा दिया। इन दोनों पर 2018 में राष्ट्रीय राजधानी में मतदाता सूची से मतदाताओं के नाम कथित तौर पर हटाए जाने के बारे में टिप्पणी करने का आरोप है। शिकायत दर्ज करने वाले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता राजीव बब्बर ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा, जिसके बाद जस्टिस हृषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी की पीठ ने उन्हें चार सप्ताह का समय दिया।
आपराधिक मानहानि मामले को खारिज
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी कर मामले में उनसे जवाब मांगा था। इस बीच, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मानहानि मामले में ट्रायल कोर्ट के समक्ष कार्यवाही पर रोक रहेगी। अरविंद केजरीवाल और आतिशी ने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा भाजपा नेता राजीव बब्बर द्वारा राष्ट्रीय राजधानी में 2018 में मतदाता सूची से मतदाताओं के नाम कथित रूप से हटाए जाने पर उनकी टिप्पणी को लेकर दायर आपराधिक मानहानि मामले को खारिज करने से इनकार करने के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया। आतिशी और केजरीवाल ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 2 सितंबर के आदेश को चुनौती दी है। उन्होंने 2018 में मतदाता सूची से कुछ समुदायों के 30 लाख मतदाताओं के नाम कथित रूप से हटाए जाने पर टिप्पणी की थी।
अनुचित राजनीतिक लाभ हासिल करने के इरादे से अपमानजनक
उच्च न्यायालय ने कहा था कि आरोप प्रथम दृष्टया भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को बदनाम करने और अनुचित राजनीतिक लाभ हासिल करने के इरादे से अपमानजनक थे। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत में लंबित मानहानि की कार्यवाही को चुनौती देने वाली आतिशी, केजरीवाल और अन्य की याचिका को खारिज कर दिया था। मानहानि की शिकायत में आप के दो अन्य नेताओं सुशील कुमार गुप्ता और मनोज कुमार का भी नाम है। इसने आप नेताओं को 3 अक्टूबर को होने वाली ट्रायल कोर्ट की सुनवाई में उपस्थित होने का भी निर्देश दिया था।
शिकायत राजनीति से प्रेरित
केजरीवाल और अन्य आप नेताओं ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसने बब्बर की शिकायत के बाद मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा जारी समन को बरकरार रखा था। हाईकोर्ट के समक्ष आप नेताओं ने मजिस्ट्रेट कोर्ट के 15 मार्च, 2019 के आदेश और सत्र न्यायालय के 28 जनवरी, 2020 के आदेश को रद्द करने की मांग की, जिसमें शिकायत को राजनीति से प्रेरित करार देते हुए कहा गया था कि बब्बर पीड़ित पक्ष नहीं हैं।