नई दिल्ली : दिल्ली के उपमुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (डीटीयू) में बने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का गुरुवार को विधिवत उद्घाटन किया। विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार के साथ बने इस मल-जल शोधन सयंत्र (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) में विश्वविद्यालय परिसर से निकलने वाले गंदे पानी और सीवर के पानी को शुद्ध किया जाएगा, जिस पानी का उपयोग पौधों की सिंचाई में किया जाएगा। करीब 1.90 करोड़ रुपए की लागत से बने 1 एमएलडी प्रतिदिन की क्षमता वाले इस प्लांट में जल शोधन की वैज्ञानिक विधियों के साथ ही परंपरागत विधियों का भी प्रयोग किया गया है।
ऐसे होता पानी शुद्ध
विश्वविद्यालय परिसर से आए गंदे जल को फिल्टर किया जाता है। फिर पॉलीथीन व प्लास्टिक को अलग कर उस गंदे जल को फव्वारों द्वारा 6 ट्रे-स्टैग में डाला जाता है। प्लास्टिक की ट्रे की 6 तहें में पापुलर की लकड़ी की कतरनें डाली हुई होती हैं। उनके नीचे बारीक बजरी, फिर थोड़ी मोटी बजरी व फिर मोटे पत्थर की तह बनाई गई है। इनसे गुजरने के बाद पानी साफ होकर बाहर एक बायो फिल्टर पिट में एकत्रित हो जाता है।
जीवाणुओं का खात्मा
जल के शुद्धिकरण के बावजूद भी उसमें 10 प्रतिशत तक जिवाणु व बदबू जैसी अशुद्धियां रह जाती हैं। इनको हटाने के लिए इस पानी को ओजोन टैंक में लाया जाता है। यहां लैब में ऑक्सीजन के अणुओं को तोड़ कर तैयार की जा रही ओजोन को 300 मिलीलीटर प्रति घंटा की दर से इस पानी में मिलाया जाता है। इसके बाद यह पानी पूरी तरह से साफ हो जाता है। इस साफ पानी को सयंत्र के पौधों के लिए प्रयोग किया जा रहा है।
बनेगी जैविक खाद
प्लांट में जो प्लास्टिक की ट्रे 6 तहों में लगाई जाती हैं, उनमें पापुलर की लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़ों में आस्ट्रेलियन केंचुए भी छोड़े गए हैं यह केंचुए पानी में मौजूद जिवाणुओं को खत्म करते हैं। आस्ट्रेलियन केंचुए लकड़ी के टुकड़ों के गलने के बाद उन्हें जैविक खाद में परिवर्तित कर देते हैं। खाद बनने की इस प्रक्रिया में 6 से 8 महीने का समय लगता है। उसके बाद इसे पौधों में डालने के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है।