नई दिल्ली: लिंग भेदभाव को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा आप सरकार की खिंचाई के बाद आखिरकार दिल्ली सरकार तिहाड़ जेल की महिला कैदियों के लिए भी सेमी ओपन और ओपन जेल के प्रस्ताव पर काम करने के लिए राजी हो गयी है। इस मामले में एक एफिडेविट लगाकर दिल्ली सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट को जानकारी दी। गौरतलब है कि कई सालों तक तिहाड़ जेल में काम कर रहे सुनील गुप्ता ने जेल में सुधारों को लेकर तैयार प्रस्ताव में खामियों को लेकर एक खाका तिहाड़ प्रशासन के समक्ष पेश किया था जिसे प्रशासन ने आप सरकार के पास बढ़ा दिया था।
लेकिन कई महीने बीत जाने के बाद भी उस पर एक कदम भी नहीं बढ़ाया गया। जिसके बाद सुनील गुप्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका में बताया था कि सेमी ओपन और ओपन जेल का प्रस्ताव साल 2011 और 2014 में बनाया गया लेकिन इन दोनों ही प्रस्तावों में महिला कैदियों को इस सुविधा में शामिल नहीं किया गया। जो साफतौर पर लिंग भेदभाव को दर्शाता है। इसे सुनील गुप्ता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। गौरतलब है कि उम्र कैद की सजा पाए कैदी जो 12 साल अच्छे आचरण के साथ सजा काटते है वो सेमी ओपन जेल और ओपन जेल के हकदार होते हैं।
सेमी ओपन जेल में कैदियों को सुबह 8 बजे से लेकर रात 8 बजे तक जेल में ही कहीं पर काम करने के लिए भेजा जाता है और उसके बाद वो अपने सेल में लौट सकते हैं। या कुछ मामलों में उन्हें अपने सेल की जगह फ्लैट में रहने की भी इजाजत दी जाती है। जो लोग सेमी ओपन जेल में 2 साल अपने काट लेते हैं वो ओपन जेल के लिए दावा कर सकते हैं। ओपन जेल में कैदी को जेल से बाहर दिल्ली में कहीं पर भी नौकरी करने की इजाजत दी जाती है।
सरकार द्वारा 2011 ओर 2014 में बनाये गए दोनों प्रस्तावों में महिला कैदियों को इस दायरे से बाहर रखना समझ से परे है। इस को लेकर हाईकोर्ट ने भी हैरानी जताई थी। दिल्ली सरकार के स्टैंडिंग काउंसिल राहुल मेहरा ने अदालत में कहा कि याचिकाकर्ता की तरफ से जो सवाल उठाए गए हैं या जो प्रस्ताव दिया गया है वो बिल्कुल वाजिब है और सरकार उस दिशा में काम करने के लिए तैयार हैं। सरकार ने ये भी साफ कर दिया कि जब भी इन प्रस्तावों पर आगे बढ़ा जाएगा तो लिंग भेदभाव जैसी सभी चीजों को इससे हटा दिया जाएगा। इस मामले में सरकार के एफिडेविट को स्वीकार करते हुए मुख्य न्यायधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति हरिशंकर की पीठ ने अगली सुनवाई 5 मार्च के लिए निर्धारित की है।
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