डॉक्टरों की बस पर पथराव, बची जान - Punjab Kesari
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डॉक्टरों की बस पर पथराव, बची जान

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नई दिल्ली : एससी/एसटी कानून में बदलाव के विरोध को लेकर भारत बंद के आह्वान के चलते एम्स के 25 डॉक्टरों की सोमवार को जान पर बन आई। ये सभी डॉक्टर गाजियाबाद नशा मुक्ति केन्द्र से दिल्ली लौट रहे थे। उसी समय हिंसा पर उतारू भीड़ ने डॉक्टरों की बस पर पथराव कर दिया। डॉक्टरों के अनुरोध करने पर भी किसी ने उनकी एक न सुनी। किसी तरह पुलिस द्वारा सुरक्षा मुहैया करवाने उन्हें सुरक्षित निकाला जा सका। देशभर में एससी/एसटी संगठनों द्वारा बंद के आह्वान के चलते विभिन्न राज्यों हिंसा भड़क गई। इसी क्रम में सोमवार को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के 25 डॉक्टरों का दल गाजियाबाद नशा मुक्ति केन्द्र से दिल्ली लौट रहा था। डॉक्टरों से भरी बस पर आंदोलनकारियों ने पथराव कर दिया।

पथराव होने से बस की खिड़कियों के शीशे टूटने लगे और डॉक्टरों में दहशत मच गई। ऐसे में भगदड़ के दौरान डॉक्टरों ने किसी तरह से बस से उतरकर अपनी जान बचाई। इसके बाद डॉक्टरों ने इस बाबत एम्स प्रबंधन को सूचना दी। इसके बाद गाजियाबाद पुलिस को तत्काल डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए सूचना दी गई। डॉक्टरों ने बताया कि भीड़ इस कदर बेकाबू थी कि बार-बार डॉक्टर होने का हवाला देने पर भी कोई उनकी एक बात सुनने को तैयार न था। खासबात यह है कि बस पर एम्स और ऑन ड्यूटी भी पोस्टर भी चस्पा था, फिर भी उग्र भीड़ ने कोई लिहाज नहीं किया। गनीमत यही रही कि खतरे को भांपते हुए डॉक्टर खुद ही समय रहते बस से उतरकर सुरक्षित स्थान पर खड़े हो गए। जानकारी के अनुसार गाजियाबाद स्थित नशा मुक्ति केंद्र में रुटीन जांच को लेकर एम्स की ओर से डॉक्टरों का दल सप्ताह में एक से दो बार वहां जाता रहता है।

पिछले चार दिनों से अवकाश होने के कारण सोमवार को डॉक्टरों का जाना तय था और तय शेड्यूल के अनुसार सोमवार सुबह बस में करीब 25 डॉक्टर वहां गए। नशा मुक्ति केंद्र में रोगियों की जांच करने के बाद जब बस गाजियाबाद से दिल्ली लौटने लगी तो यूपी बॉर्डर पर कुछ आंदोलनकारियों ने बस को चारों ओर से घेर लिया और पथराव शुरू कर दिया। बस में मौजूद डॉक्टरों ने बताया कि रेलवे ट्रैक पर पड़े रहने वाले पत्थरों से आंदोलनकारी हमला कर रहे थे। उनके हमले से बस अधिकांश शीशे टूट गए। कुछ डॉक्टर पहले पहल सीट के नीचे घुस गए तो कुछ ने कोहनी से अपना सिर बचाया। एक डॉक्टर ने बताया कि आंदोलनकारियों की संख्या कम होने की वजह से बड़ा हादसा टल गया वरना उनकी जान के लाले पड़ सकते थे। उन्होंने यह भी बताया कि हिंसा करने वालों में 17 से 22 वर्ष तक की आयु के लड़के उत्पात मचा रहे थे।

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