नई दिल्ली : मलेरिया को जड़ से खत्म करने के लिए भारत समेत दुनिया भर में लंबे समय से रिसर्च चल रही है, लेकिन अभी तक इसका सटीक तोड़ नहीं निकल पाया। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के वरिष्ठ मानते हैं कि पैरासाइट्स भिन्न होने की वजह से सही परिणाम हाथ नहीं लग पा रहे।
यही वजह है कि अध्ययन अब तक निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा है। मलेरिया को लेकर भारत और अफ्रीकी देशों को मलेरिया से बचाने के लिए दुनिया भर में इसके टीके को लेकर रिसर्च लंबे समय से चल रही हैं। भारतीय वैज्ञानिकों का मानना है कि मलेरिया के टीके की खोज में कई देशों के वैज्ञानिक जुटे हैं, लेकिन अभी तक 30 से 40 फीसदी परिणाम ही सकारात्मक देखने को मिल रहे हैं।
भारत और अफ्रीकी देशों में मलेरिया के मामले में सर्वाधिक सामने आते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में ग्रस्त मरीजों में भारत की सहभागिता छह फीसदी है। जबकि दुनिया के 90 फीसदी मलेरिया पीड़ित दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में पाए जा रहे हैं। भारत को मलेरिया से मुक्त करने के लिए सरकार ने वर्ष 2030 का लक्ष्य रखा है।
इसी के तहत किए गए प्रयास से उड़ीसा में काफी बदलाव देखने को मिला है, लेकिन अन्य राज्यों में स्थिति गंभीर बनी है। 2014 में Malaria के चलते 562 लोगों की मौत हो गई थी। जबकि 2017 में 194 लोगों ने दम तोड़ दिया। आईसीएमआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक बताते हैं कि कई वर्षों से मलेरिया के टीके की खोज पर काम चल रहा है। लेकिन इसके पैरासाइट्स भिन्न होने की वजह से सही परिणाम हाथ नहीं लग पा रहे।