भीमा-कोरेगांव हिंसा के मामले में पांच वामपंथी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई 12 सितंबर तक टल गई है। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने ट्रांजिट रिमांड की मांग को खारिज करते हुए गिरफ्तार किए गए सभी लोगों को उनके घरों में नजरबंद रखने का आदेश दिया था।
भीमा कोरेगांव मामले में पांचों सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को लेकर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र पुलिस को कड़ी पटकार लगाई. साथ ही मामले की सुनवाई टल गई। हालांकि हाउस अरेस्ट पर अंतरिम आदेश को लेकर बहस जारी रहेगी. मामले की अगली 12 सितंबर को फिर होगी।
सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने सख्त लहजे में टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि पुणे पुलिस ने कैसे कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए। बता दें कि पुणे पुलिस के असिस्टेंट कमिश्नर शिवाजी पवार ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि उच्चतम न्यायालय को इस केस में दखल नहीं देना चाहिए।
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भीमा-कोरेगांव मामले की जांच करने के लिए स्वतंत्र जांच कराने की मांग की और इसके लिए कोर्ट की ओर से एक कमेटी गठित करने की भी मांग की है। बता दें इससे पहले बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र सरकार ने हलफनामा पेश कर कहा था कि उनके पास पांचों लोगों के खिलाफ पुख्ता सुबूत हैं।
महाराष्ट्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि पांच वामपंथी कार्यकर्ताओं को विरोध के कारण नहीं बल्कि प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) से उनके संपर्कों के बारे में ठोस सबूत के आधार पर गिरफ्तार किया गया है।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने 29 अगस्त को इन कार्यकर्ताओं को छह सितंबर तक घरों में ही नजरबंद रखने का आदेश देते हुए महाराष्ट्र पुलिस को नोटिस जारी किया था। इस नोटिस के जवाब में ही राज्य पुलिस ने बुधवार को हलफनामा दाखिल किया।
सुप्रीम कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में इन कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ इतिहासकार रोमिला थापर और अन्य की यचिका पर 29 अगस्त को सुनवाई के दौरान कहा था कि ‘असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व’ है। यह बेंच गुरुवार को इस मामले में आगे सुनवाई करेगी।
रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र पुलिस ने इस नोटिस के जवाब में ही अपने हलफनामे में दावा किया है कि ये कार्यकर्ता देश में हिंसा फैलाने और सुरक्षा बलों पर घात लगाकर हमला करने की योजना बना रहे थे। राज्य पुलिस का कहना है कि विरोधी नजरिए की वजह से इन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया और इसे सिद्ध करने के लिए उसके पास पर्याप्त सबूत हैं।
महाराष्ट्र पुलिस ने गिरफ्तार कार्यकर्ताओं से पूछताछ के लिए उन्हें हिरासत में देने का अनुरोध करने के साथ ही सवाल उठाया है कि याचिकाकर्ता रोमिला थापर और अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक, देविका जैन, समाजशास्त्री सतीश देशपांडे और कानून विशेषज्ञ माजा दारूवाला ने किस हैसियत से याचिका दायर की है और कहा कि वे इस मामले की जांच से अनजान हैं।
बता दें कि महाराष्ट्र पुलिस ने 28 अगस्त को कई राज्यों में प्रमुख वामपंथी कार्यकर्ताओं के घरों पर छापे मारे थे और माओवादियों से संपर्क होने के संदेह में कम से कम पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था। इन गिरफ्तारियों को लेकर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने जबर्दस्त विरोध किया था। पुलिस ने इस छापेमारी के दौरान प्रमुख तेलुगु कवि वरवरा राव को हैदराबाद और वेर्नन गोंसाल्विज और अरुण फरेरा को मुंबई से गिरफ्तार किया गया था जबकि ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को फरीदाबाद और नागिरक अधिकारों के कार्यकर्ता गौतम नवलखा को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था।