राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का सबसे पुराने सहयोगी शिरोमणी अकाली दल (शिअद) के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राष्ट्रीय महासचिव मनजिंदर सिंह सिरसा ने बुधवार को भाजपा सरकार द्वारा गुरुद्वारों में की जा रही दखलांदाजी को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी थी। इसके तुरंत बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई। सिरसा के बयान के बाद भाजपा, राष्ट्रीय सिख संगत (आरएसएस) और शिरोमणी अकाली दल (दिल्ली) की तरफ से प्रतिक्रिया आई कि यह सब वोट बैंक की राजनीति के लिए सिखों को गुमराह करने की कोशिशें हैं।
आरएसएस के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. अवतार सिंह शास्त्री ने तो यह तक कह दिया कि सिख विषयों पर कार्य करना केवल अकाली दल का एकाधिकार नहीं है। अकाली दल हमेशा धार्मिक स्थानों का उपयोग अपने राजनीतिक हितों के लिए करता रहा है। इस पूरे मामले में सिरसा ने दोबारा यही दोहराया है कि अगर गुरु घर में कोई अनावश्यक दखल देगा तो कुर्सियां, पद व गठबंधन हमारे लिए कोई मायने नहीं रखता है। उन्होंने भाजपा को अल्टीमेटम देते हुए कहा कि गुरुद्वारों में दखल देना बंद करें।
अगर भाजपा की गुरुद्वारों के अंदर दखलांदाजी बंद नहीं होगी तो हम किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं, क्योंकि एक सिख के लिए उसके पवित्र स्थान गुरुद्वारे सबसे ऊपर हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार चुनाव की बजाय पीछे से अपना प्रधान थोपना चाहती है। गुरुद्वारे का प्रधान कौन बनेगा यह हक सिखों का है, सरकार का नहीं। पेश है इन सब बातों को लेकर पंजाब केसरी के सुरेंद्र पंडित और मृत्युंजय राय की मनजिंदर सिंह सिरसा के साथ खरी-खरी…
अचानक आपको कैसे लगा कि भाजपा गुरुद्वारों में दखल दे रही है ?
गुरुद्वारा कमेटी के प्रधान या महासचिव जीतकर यहां आते हैं। अचानक से अगर कोई भी सरकार यह कहे कि अब यहां का प्रधान कौन होगा यह सरकार तय करेगी। यह कैसे संभव है, नांदेड़ में ऐसा ही हुआ है। अब महाराष्ट्र सरकार ने नया कानून बना दिया है कि यहां छह मेंबर सरकार तय करेगी। पहले 17 चुने हुए मेंबर्स प्रधान को तय करते थे, वहीं अब महाराष्ट्र सरकार ने एक्ट के कॉलम 11 में बदलाव कर सरकार द्वारा प्रधान चुनना तय कर दिया है। यह कैसे संभव है, इसका विरोध तो तय है।
इस बदलाव के लिए किसी ने सलाह दी थी या सरकार ने खुद तय कर लिया ?
इसका जवाब तो उन्हें देना है। सरकार ने बदलाव किया और केंद्र सरकार से मंजूरी ले ली। इसके बाद इन्होंने तारा सिंह को प्रधान भी बना दिया। उस समय भी इसका विरोध किया गया था और अब जारी है।
महाराष्ट्र सरकार तो एक्ट में बदलाव की बात नहीं कर रही है?
ऐसा नहीं है। वह सिर्फ उस कानून की बात कर रहे हैं जिसमें छह मेंबर्स सरकार द्वारा लाने की बात कही थी, उस पर फिलहाल शीतकालीन तक के लिए रोक लगाई है, लेकिन प्रधान थोपने की बात पर अब भी चुप्पी साध रखी है। सरकार बताए कि इस पर वह क्या कर रही है।
केंद्र सरकार में आपका मंत्री है, उन्होंने इस मुद्दे को क्यों नहीं उठाया?
डीएसजीएमसी और शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी एक धार्मिक संस्था है। लोगों ने यह अधिकार हमें दिया है कि हम इस पर बात करें। जो काम आज तक कांग्रेस या गोरों ने नहीं किया वह काम भाजपा करेगी तो बोलना पड़ेगा। हम चुप क्यों रहेंगे।
आपने जो बयान दिया था वह धार्मिक संस्था की तरफ से था या पार्टी की तरफ से?
मैंने ट्वीट कर धर्मिक क्षेत्र में दखलांदाजी रोकने की बात कही थी। मीडिया ने इसे केंद्र के साथ गठबंधन से जोड़कर पेश किया। तो मैंने कहा कि भाजपा अगर धार्मिक मसलों में दखल देगी तो हम बोलेंगे। सरकार अपनी मनमर्जी कर रही है हम इसका विरोध करेंगे। मुझसे पूछा गया कि क्या आप विधायक पद छोड़ेंगे? तो मैंने कहा कि हमारे लिए पद मायने नहीं रखता है।
भाजपा के आरपी सिंह ने कहा कि हर सिख अकाली कैसे हो सकता है?
मैं तो यही कहूंगा जो सिख है वह अकाली है। आरपी सिंह सिख नहीं हैं। उनकी विचारधारा में सिख कोई धर्म नहीं है। हम कहते हैं कि सिख एक धर्म है। हम कहते हैं कि धारा 25 बी में बदलाव किया जाए और सिख को अलग धर्म माना जाए। हम आनंद मैरिज एक्ट की बात करते हैं। उन्हें सिखी की परिभाषा नहीं पता है।
एक बात यह भी आती है कि कहीं इसके राजनीतिक मायने तो नहीं हैं?
इस दुनिया में जब भी किसी ने कोई बात की है उसे राजनीतिक मायने, नफा-नुकसान से जोड़कर देखा जाता है। हर छह महीने बाद कोई न कोई चुनाव आ जाते हैं। आप जब भी
बात करते हैं चुनाव सिर पर होते
हैं। इसे राजनीति से जोड़कर नहीं देखना चाहिए।
लोगों का कहना है कि अकाली दल दिल्ली में एक लोकसभा की सीट चाहता है?
मुझे इस बारे में पता नहीं। यह पार्टी तय करेगी, अगर ऐसा होता है तो इसमें कोई गलत बात नहीं है। ये सारी बातें आलाकमान को तय करनी है।
वैसे तो भाजपा के साथ आपका गठबंधन है। लेकिन जब सिख प्रकोष्ठ कमेटी में हिस्सेदारी की बात करता है तो आप विरोध करते हैं?
हम कहते हैं कि आप लोगों में जाओ, जीतकर आओ। गुरुद्वारा कमेटी के चुनाव में किसी पार्टी के साथ हमारा कोई गठबंधन नहीं है। गुरुद्वारा कमेटी चुनाव में हम किसी भी सीट पर बंटवारा नहीं करेंगे।
गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी और अन्य मामलों को लेकर आपकी पार्टी से लोग जा रहे हैं? क्या लगता है जनाधार कम हो रहा है?
ये तो वर्षों से होता आया है। कभी पार्टी में कोई आता है तो कोई जाता है। इससे पहले भी एसजीपीसी के प्रधान पार्टी छोड़कर चले गए थे। फिर टकसाल के नेता गए, लेकिन पार्टी तो वहीं है। इससे पार्टी को कोई नुकसान नहीं हुआ।
दिल्ली कमेटी में पारदर्शी से हो रहा है काम… बीते दिनों जो भी भ्रष्टाचार के आरोप कमेटी पर लगाए गए, उसके बाद हमने कमेटी की कार्यकारिणी भंग कर दी। अब सभी कामों में पारदर्शिता लाई गई है। अब अगर कोई छोटी-मोटी रकम इधर-उधर कर दे तो नहीं कह सकता, लेकिन भ्रष्टाचार को ध्यान में रखते हुए कई कदम उठाए गए हैं।
कार्यकारिणी चुनाव के मामले में सिरसा का कहना है कि हमने एक्ट के मुताबिक दोबारा इस्तीफा दे दिया है। कोर्ट ने भी चुनाव कराने को लेकर हरी झंडी दे दी है। कमेटी की तरफ से गुरुद्वारा चुनाव आयोग को भी इससे संबंधित पत्र भेजे गए हैं। अगर वह चाहे तो कभी भी चुनाव करवा सकते हैं। अगर चुनाव अपने तय समय में हो तो भी हमें इस पर कोई आपत्ति नहीं है।
‘आप’ जानबूझकर संपत्ति का ब्योरा नहीं दे रही है…
सिरसा ने बताया कि मैं अपनी संपत्ति का ब्योरा हमेशा से देता आया हूं। मुझे लगता है कि जनता ने आप को पांच सालों के लिए चुनकर भेजा है। अब इस बीच आपकी संपत्ति में क्या इजाफा हुआ इसके बारे में पता लगाना जनता का हक है। मैंने पहले भी विधानसभा स्पीकर को पत्र लिखकर इसके लिए आग्रह किया था।
दरअसल आम आदमी पार्टी (आप) के ज्यादातर विधायकों के पास चुनाव से पहले न गाड़ी थी और न ही मकान अब सब कुछ है उनके पास। इसलिए ये लोग संपत्ति का ब्योरा देने से कतरा रहे हैं। जबकि केजरीवाल ने ही लोकायुक्त और लोकपाल के लिए संघर्ष किया था। अब उनकी इमानदारी कहां चली गई।