क्या सरकार को नागरिकों से पहचान का सबूत मांगने का हक नहीं : SC - Punjab Kesari
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क्या सरकार को नागरिकों से पहचान का सबूत मांगने का हक नहीं : SC

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सुप्रीम कोर्ट ने आज सवाल किया कि यदि नागरिकों को कोई लाभ मिलना उनकी पहचान पर निर्भर हो तो क्या सरकार को उनसे पहचान का सबूत मांगने का हक नहीं है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने यह भी कहा कि आधार योजना के पीछे यह तर्क हो सकता है कि लोगों के पास एक पहचान-पत्र होना चाहिए।

न्यायमूर्ति ए के सीकरी, ए एम खानविलकर, डी वाई चंद्रचूड़ और अशोक भूषण की सदस्यता वाली पीठ ने सवाल किया, ‘‘यदि आपका हक इस बात पर निर्भर करता है कि आप कौन हैं, तो क्या सरकार को सबूत की जरूरत नहीं हो सकती? क्या यह एक तार्किक शर्त नहीं है?’’ आधार योजना और 2016 के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा, ”यदि निर्विवाद रूप से कोई हक है तो कोई यह साबित करने का कोई न्यूनतम तरीका तो होना चाहिए कि आप कौन हैं।”

पीठ ने कहा, ”यदि किसी शर्त की वजह से आपको संवैधानिक अधिकार छोड़ना पड़े तो वह शर्त असंवैधानिक है।” यह टिप्पणी तब की गई जब दलील दी गई कि किसी व्यक्ति का प्राथमिक दर्जा एक नागरिक का है, आधार कार्ड धारक का नहीं। पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि पहचान के सबूत को व्यक्ति की हैसियत को जोड़ना है, जिससे वह लाभ का हकदार बनता है और नागरिकों के पास अपनी पहचान साबित करने का विकल्प होना चाहिए।

इसके बाद उन्होंने विधवा पेंशन की हकदार एक महिला का हवाला दिया और कहा कि उसकी हैसियत की वजह से वह लाभ की हकदार बनी, पहचान की वजह से नहीं और सरकार इस बात पर जोर नहीं दे सकती कि सिर्फ आधार से ही पहचान साबित की जाए। सिब्बल की दलीलें पूरी होने के बाद वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने अपनी बहस शुरू की और कहा कि आधार योजना ने गरिमा, स्वतंत्रता एवं समानता में हस्तक्षेप किया है और एक व्यक्ति को डिजिटल इकाई बना डाला है। इस मामले में अगली सुनवाई 15 फरवरी को होगी।

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