नई दिल्ली : दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की कहानी भी अजीब है। पार्टी का दिल्ली में प्रदर्शन लगातार गिरता रहा, तीन प्रदेश अध्यक्ष बदल गए लेकिन प्रदेश प्रभारी नहीं बदले, ऐसा क्यों? यह सवाल हमारा नहीं बल्कि पार्टी के भीतर से उठ रहा है। दिल्ली के प्रदेश प्रभारी पीसी चाको को लेकर पार्टी के भीतर अब असंतोष उभरने लगा है। अभी लोकसभा चुनाव-2019 में खराब प्रदर्शन के चलते प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित ने अपना इस्तीफा पार्टी आलाकमान को भेज दिया, लेकिन प्रदेश प्रभारी ने इस हार में अपनी नैतिक जिम्मेदारी नहीं समझी, लेकिन टिकटों के बंटवारे में पीसी चाको की अहम भूमिका थी।
यहां तक की पीसी चाको ही थे जिन्होंने आम आदमी पार्टी (आप) से गठबंधन के लिए रात-दिन एक कर दिया। जबकि प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित और कार्यकारी अध्यक्ष लगातार कह रहे थे कि गठबंधन नहीं होना चाहिए, नहीं तो दिल्ली में पार्टी की स्थिति और खराब हो जाएगी। लेकिन पीसी चाको अंतिम समय तक आप पार्टी से गठबंधन कराने में लगे रहे, यह अलग बात है कि गठबंधन नहीं हुआ।
अब लोकसभा चुनाव का जो परिणाम सामने आया, उससे यह साफ हो गया कि अगर आप और कांग्रेस मिलकर भी दिल्ली में लड़ते तो भी भाजपा को नहीं हरा पाते, लेकिन इस चुनाव से कांग्रेस के पक्ष में एक अच्छी बात यह हुई कि पांच स्थानों पर कांग्रेस नम्बर दो पर रही। यानी की कांग्रेस का कैडर काफी हद तक लौटा। अब अगर पीसी चाको की बात मान ली जाती और गठबंधन हो जाता तो क्या कांग्रेस 6 महीने बाद दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव में अपने लौटते कैडर को जान पाती? लेकिन पीसी चाको से यह सवाल पूछने वाला कोई नहीं है, न ही उन्होंने अपनी हार की नैतिकता ही समझी।
गौरतलब है कि 2014 में महासचिव शकील अहमद की तबीयत खराब होने के कारण पीसी चाको को अस्थाई तौर पर प्रदेश प्रभारी के रूप में चार्ज दिया गया था। इस समय प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली थे। उसके बाद ही 2015 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस बुरी तरह हार गई। इस दौरान प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन को बनाया गया था। 2017 में कारपोरेशन के चुनाव हुए। इस चुनाव की अगुवाई में भी पीसी चाको शामिल रहे। कारपोरेशन के चुनावों में कांग्रेस पर टिकट बेचने का भी आरोप लगा।
इसके साथ ही 2017 में विधानसभा के लिए उपचुनाव भी हुए, लेकिन वह भी कांग्रेस हार गई। लेकिन इसके बाद प्रदेश प्रभारी अजय माकन ने इस्तीफा दे दिया। अब प्रदेश अध्यक्ष के रूप में शीला दीक्षित ने कमान संभाल ली, लेकिन प्रदेश प्रभारी पीसी चाको ही रहे। अब 2019 में लोकसभा के चुनाव हुए, जिसमें पीसी चाको ने गठबंधन के लिए और टिकटों में बड़ी भूमिका निभाई, लेकिन कांग्रेस दिल्ली में एक भी सीट नहीं जीत पाई।
शीला दीक्षित ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपना इस्तीफा दे दिया है, जिसे पार्टी आलाकमान ने स्वीकर नहीं किया है। सूत्रों का कहना है कि पीसी चाको लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही दिल्ली का कामकाज छोड़ कर अपने टिकट की जुगाड़ के लिए केरल भी चले गए थे। कहा जा रहा था कि वह केरल से चुनाव लड़ेगें, लेकिन बाद में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो वापस दिल्ली आ गए और दिल्ली में पार्टी को चुनाव लड़वाया लेकिन जीत नहीं दिला सके। अब पार्टी के भीतर पीसी चाको को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। कार्यकर्ताओं तो यहां तक कह रहे हैं कि पीसी चाको दिल्ली में पार्टी के लिए अनलकी तो नहीं हैं।
– सुरेन्द्र पंडित