दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकार को एक छात्र को दी गई छात्रवृत्ति पर शेष किश्त का भुगतान करने का आदेश दिया, भले ही छात्र के माता-पिता ने प्रारंभिक किस्त का भुगतान नहीं किया था। कोर्ट ने कहा कि यह छात्र के अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा इंस्पायर योजना के तहत एक वार्षिक छात्रवृत्ति की तीसरी किस्त नहीं देने के लिए केंद्र पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया। अदालत ने केंद्र को दिल्ली विश्वविद्यालय के एक छात्र को यह राशि आठ सप्ताह के भीतर देने का निर्देश दिया। अदालत ने केंद्र को छह प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ छात्र को 60,000 रुपये की तीसरी किस्त जारी करने का भी आदेश दिया। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत काम करने वाले विभाग ने जनवरी 2017 में छात्र को ‘अभिप्रेरित अनुसंधान के लिए विज्ञान की खोज में नवोन्मेष’ (इंस्पायर) छात्रवृत्ति की पेशकश की थी। इसके लिए पात्र होने के वास्ते छात्रों को बारहवीं कक्षा में उनके संबंधित बोर्ड के शीर्ष एक प्रतिशत में होना चाहिए।
अदालत ने केंद्र के इस दावे को खारिज कर दिया
मौजूदा मामले में, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से संबंध रखने वाले छात्र को पहले दो वर्षों के लिए छात्रवृत्ति राशि का भुगतान किया गया था, लेकिन तीसरे वर्ष के लिए उसकी छात्रवृत्ति रोक दी गई थी। केंद्र का दावा था कि योजना के तहत पात्र बने रहने के लिए छात्र का मुख्य विषयों में ‘सीजीपीए’ कम से कम 6 होना चाहिए। हालांकि, अदालत ने केंद्र के इस दावे को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि दिशानिर्देशों में 6.0 सीजीपीए की आवश्यकता संपूर्ण योग में थी न कि मुख्य विषयों में। छात्र के ‘ट्रांसक्रिप्ट’ से पता चलता है कि पहले और दूसरे सेमेस्टर के लिए उसका सीजीपीए 7.45 था और तीसरे और चौथे सेमेस्टर के लिए 6.32 था, जो आवश्यक सीमा से ऊपर था।
छात्र को बीएससी के बाद पढ़ाई रोकनी पड़ी
अदालत ने कहा कि प्रतिभाओं के लिए लागू दिशानिर्देशों में या इंस्पायर योजना में इसका उल्लेख नहीं है कि मुख्य विषयों में 6.0 सीजीपीए जरूरी होगा। इसलिए याचिकाकर्ता (छात्र) की छात्रवृत्ति रद्द करना या नहीं देने का पूरी तरह से समर्थन नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने कहा कि केंद्र द्वारा तीसरी किस्त जारी नहीं करने के फैसले के कारण छात्र को बीएससी के बाद पढ़ाई रोकनी पड़ी।