कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को जमीनी स्तर पर कड़ी टक्कर देने की तैयारी कर रही है। इसी क्रम में पार्टी युवा एवं छात्र संगठनों के चुनाव बंद करने पर विचार कर रही है। देर से ही सही, मगर कांग्रेस अपने युवा वर्ग की कमजोरी को महसूस कर रही है, जो कभी उसकी आंदोलनकारी राजनीति की ताकत थी। यह अब युवाओं के साथ जुड़कर युवा नेताओं को तैयार करनी चाहती है। पिछले दिनों फैजाबाद में प्रियंका गांधी ने संकेत दिया था कि वरिष्ठ नेता युवा संगठनों में चुनाव कराने के विचार के खिलाफ हैं।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के सामने यह मामला उठाया है। इस पर सोनिया ही अंतिम फैसला लेंगी। भारतीय युवा कांग्रेस (आईवाईसी) और नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) के चुनाव राहुल गांधी द्वारा 2007 में शुरू किए गए थे, जब वह इन संगठनों के महासचिव प्रभारी थे। उस समय यह चुनाव ब्लॉक से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक नई प्रतिभाओं को सामने लाने के लिए शुरू किए गए थे।
राहुल गांधी ने चुनाव आयोग के पूर्व सलाहकार के.जे. राव से उनकी पार्टी को युवा संगठनों में चुनाव से संबंधित सलाह देने को भी कहा था। पार्टी के एक नेता ने कहा, पहले पार्टी ने एक नामांकन प्रणाली का पालन किया। चुनाव एक अच्छे इरादे से शुरू किए गए थे, लेकिन इनमें हेरफेर किया गया और कई नेताओं के बच्चे चुने गए।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बेटे आनंद रावत, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते रवनीत सिंह बिट्टू और हरियाणा के पूर्व मंत्री कैप्टन अजय यादव के पुत्र चिरंजीव राव उन लोगों में शामिल रहे, जो चुनावों के बाद से अपने राज्यों में कांग्रेस के युवा संगठनों से चुने गए थे। कुछ नेताओं ने हालांकि अपनी प्रतिभा के बल पर भी सफलता हासिल की, मगर ऐसे युवा नेता अपवाद के तौर पर ही रहे। उदाहरण के तौर पर पूर्व आईवाईसी अध्यक्ष केशव चंद यादव। यादव एक विनम्र पृष्ठभूमि से आए थे, मगर उनके खिलाफ शिकायतें आने के बाद उन्हें हटा दिया गया।