नैनीताल : उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य के ऐतिहासिक शिव धाम जागेश्वर के रखरखाव को लेकर महत्वपूर्ण आदेश दिया है। न्यायालय ने अपने आदेश में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) को जागेश्वर धाम में जीर्ण-क्षीर्ण मूर्तियों को उनके मौलिक स्वरूप में लाने के निर्देश दिए हैं। साथ ही धाम के तीन किमी की परिधि में पेड़ के कटान पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया है और सरकार से इस संबंध में एक शपथ पत्र भी पेश करने को कहा है।
इसके साथ अदालत ने अल्मोड़ा जिला स्थित अरतोला-जागेश्वर मोटर मार्ग के निर्माण पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। अदालत ने कहा कि सड़क का निर्माण तब तक बंद रहेगा जब तक कि वर्तमान में मौजूद कानून के प्रावधानों में संशोधन नहीं किया जाता या फिर क्षेत्र के नियोजित विकास के लिये विशेष विकास प्राधिकारण का गठन नहीं किया जाता है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा एवं न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की युगल पीठ ने जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए एएसआई को यह भी निर्देश दिये हैं कि वह प्राचीन स्मारक एवं पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 के प्रावधानों के तहत जागेश्वर धाम के तीन किमी की परिधि में मौजूद सभी मंदिरों की देखभाल करे और इस कार्य के लिये सभी आवश्यक कदम उठाए। उच्च न्यायालय ने जागेश्वर धाम एवं उसके आसपास के ग्रामीणों के पत्र का संज्ञान लेते हुए ये निर्देश जारी किये हैं।
जागेश्वर धाम में उमड़ा भक्तों का सैलाब
न्यायालय ने पत्र पर स्वत : संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका स्वीकार कर ली थी। पत्र में ग्रामीणों की ओर से कहा गया है कि जागेश्वर धाम में बनाये जा रहे अरतोला-जागेश्वर मोटर मार्ग के निर्माण में उत्तर प्रदेश रोड साइड लैण्ड कंट्रोल एक्ट का पालन नहीं किया जा रहा है। पत्र में आगे कहा गया है कि जागेश्वर धाम के मंदिरों की देखभाल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा की जाती है लेकिन जागेश्वर धाम के आसपास के मंदिरों की देखभाल नहीं की जाती है।
अदालत ने अपने आदेश में पवित्र जागेश्वर धाम में स्थित सभी होटलों को भी निर्देशित किया है कि वे सीवर को पास ही बह रही नदी में न बहने दें। इसके साथ ही अदालत ने सरकार से इस संबंध में तीन सप्ताह के अंदर एक शपथ पत्र पेश करने को भी कहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 22 अक्टूबर को होगी।