इंदौर : ग्रामीण यांत्रिकी सेवा (आरईएस) के एक कार्यपालन यंत्री, चार उप यंत्री, सात अनुविभागीय अधिकारी सहित 12 अफसरों द्वारा मनरेगा में 52 लाख रुपए से अधिक का घोटाला सामने आया है। अफसरों ने तीन सड़कों और दो तालाब के निर्माण में फर्जी मजदूर बता दिए और फर्जी बिल के जरिए पैसा हजम कर लिया। ईओडब्ल्यू इंदौर ने जांच के बाद सभी 12 अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत अपराध दर्ज किया है।
ईओडब्ल्यू एसपी सव्यसाची सराफ के मुताबिक, राज्य शासन ने 2009-2010 में मनरेगा योजना के तहत 52 लाख चार हजार रुपए स्वीकृत किए थे। इस राशि से ग्रामीण यांत्रिकी सेवा द्वारा भंवरगढ़ से मोरतमाल, पटेल फालिया से मंसूर व कन्नड़ से विचवा सड़क निर्माण और मोरगुन व डोंगरिया में तालाब निर्माण किया जाना था। निर्माण पूरा होने के बाद इसमें पद के दुरुपयोग और आर्थिक घोटाले की शिकायत की गई थी। शासन ने जांच ईओडब्ल्यू को सौंपी थी।
जांच अधिकारी एवं ईओडब्ल्यू इंस्पेक्टर एनपी टाडा के मुताबिक जांच में निर्माण संबंधी दस्तावेजों का परीक्षण किया गया तो केवल एक करोड़ खर्च के दस्तावेज मिले। उसमें भी फर्जी मजदूर दर्शा कर भुगतान किया गया। रजिस्टर में मजदूरों के नाम तो अलग अलग पाए गए किंतु भुगतान के लिए रजिस्टर में दस्तखत एक ही व्यक्ति ने कर दिए। साथ ही भुगतान के फर्जी बिल भी मिले जो जब्त किए गए।
शेष 52 लाख 13 हजार रुपए खर्च के कोई दस्तावेज या हिसाब नहीं मिला जबकि भुगतान पूरे स्वीकृत एक करोड़ 52 लाख रुपए का हो गया। सभी 12 अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार अधिनियम की धारा (7), भादवि की धारा 420, 418, षड़यंत्र रचने के आरोप में धारा 120-बी के तहत प्रकरण दर्ज किया गया है।
इन अफसरों पर केस दर्ज हुआ : कार्यपालन यंत्री एमएल पाराशर, चार उप यंत्री आर.के आरसे, एसआर कनखरे, एमएस भाटिया, एमएस पहाड़िया, सात अनुविभागीय अधिकारी केके जैन, एके चौकसे, आरके जोशी, दिलीप डोंगरे, सतीश राणे, आरसी जोशी और भालसे।