द. एशिया की आर्थिक प्रगति व्यापार, निवेश पर निर्भर : कांत - Punjab Kesari
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द. एशिया की आर्थिक प्रगति व्यापार, निवेश पर निर्भर : कांत

कांत ने कहा कि दक्षिण एशिया में आर्थिक वृद्धि अमेरिका या यूरोप से नहीं आएगी और इसके लिये

नयी दिल्ली : नीति आयोग के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) अमिताभ कांत ने कहा कि अंतर-क्षेत्रीय व्यापार के अभाव के कारण दक्षिण एशिया का विकास ‘गंभीर रूप से प्रभावित’ हुआ है। उन्होंने क्षेत्र में निवेश, यात्रा और पर्यटन को बढ़ावा देने की जरूरत पर बल दिया। कांत ने कहा कि दक्षिण एशिया में आर्थिक वृद्धि अमेरिका या यूरोप से नहीं आएगी और इसके लिये दक्षेस (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) देशों की राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रतिबद्धता की जरूरत है। इससे वृद्धि को गति और गरीबी उन्मूलन में भी मदद मिलेगी।

दक्षेस विकास कोष (एसडीएफ) भागीदारी सम्मेलन , 2018 को यहां संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘राजनेता कुछ भी कह सकते हैं तथा क्षेत्र की राजनीति कुछ और कर सकती है लेकिन क्षेत्र के रूप में दक्षिण एशिया गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है। यह क्षेत्र तबतक पिछड़ा रहेगा जबतक हम एकीकृत नहीं होते और हम क्षेत्र में जोर-शोर से व्यापार, निवेश, यात्रा तथा पर्यटन को आगे नहीं बढ़ाते।’’ कांत ने कहा कि दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में यात्रा और पर्यटन की प्रकृति अंतर – क्षेत्रीय है।नीति आयोग के सीईओ ने कहा, ‘‘अगर आप अमेरिका और यूरोप को देखें, वहां व्यापार, यात्रा और पर्यटन अंतर – क्षेत्रीय है। लेकिन अगर आप दक्षिण एशिया को देखें, यह दुनिया में सबसे कम एकीकृत क्षेत्र है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अगर आप अंतर- क्षेत्रीय व्यापार देखे, आपको एक तरह से दक्षेस क्षेत्र में कोई व्यापार नहीं दिखेगा। कोई अंतर- क्षेत्रीय यात्रा और पर्यटन नहीं है… इसीलिए क्षेत्र के भीतर व्यापार के गुणक प्रभाव से दक्षेस देश लाभान्वित नहीं हुए।’’ कांत ने कहा कि दक्षेस देश क्षेत्र में साथ मिलकर काम नहीं कर पाये और इसके लिये स्वयं के अलावा किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इस बात को रेखांकित किया कि क्यों भारतीय पर्यटक दक्षिण एशियाई देशों के बजाए थाईलैंड, सिंगापुर और मलेशिया जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई देश जाते हैं।कांत ने दक्षिण एशियाई क्षेत्र में महिलाओं को अधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों में महिलाओं का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में योगदान केवल 25 प्रतिशत है। वहीं दुनिया के दूसरे देशों में महिलाओं का जीडीपी में योगदान 48 प्रतिशत है।

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