Philippines को ब्रह्मोस मिसाइल की दूसरी खेप, भारत के रक्षा निर्यात को बढ़ावा - Punjab Kesari
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Philippines को ब्रह्मोस मिसाइल की दूसरी खेप, भारत के रक्षा निर्यात को बढ़ावा

फिलीपींस को मिली ब्रह्मोस मिसाइल, भारत के रक्षा निर्यात में बढ़ोतरी

भारत के रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने के लिए ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल सिस्टम की बैटरियों का दूसरा बैच फिलीपींस भेजा गया है।

पहली बैटरी अप्रैल 2024 में भारतीय वायुसेना के विमान में भेजी गई थी, जिसमें सिविल एयरक्राफ्ट एजेंसियों से सहायता मिली थी। ये खेप दोनों देशों के बीच हुए रक्षा समझौते के तहत भेजी गई है।

रिपोर्ट्स के अनुसार, उपकरणों के फिलीपींस के पश्चिमी हिस्से में पहुंचने तक हेवी लोड के साथ लंबी दूरी की यह उड़ान, बिना रुके करीब 6 घंटे की थी।

ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल की सप्लाई के लिए फिलीपींस के साथ सौदे की घोषणा जनवरी 2022 में की गई थी।

फिलीपींस को मिसाइल सिस्टम के लिए तीन बैटरियां मिलेंगी, जिसकी रेंज 290 किलोमीटर है और इसकी गति 2.8 मैक (लगभग 3,400 किलोमीटर, ध्वनि की गति से तीन गुना) है। ब्रह्मोस मिसाइल को सबमरीन, जहाज, विमान या जमीन से लॉन्च किया जा सकता है।

केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के अनुसार, भारत का लक्ष्य वर्ष 2029 तक 3 लाख करोड़ रुपये के रक्षा उपकरण बनाना है।

पतियों का पत्नियों से मन भरने के पीछे छिपी वजहें

भारत में रक्षा उत्पादन वर्ष 2014 में 40,000 करोड़ रुपये से बढ़कर वर्तमान में 1.27 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है।

केंद्रीय मंत्री के अनुसार, “इस वर्ष रक्षा उत्पादन के 1.60 लाख करोड़ रुपए को पार करने की उम्मीद है, जबकि हमारा लक्ष्य वर्ष 2029 तक 3 लाख करोड़ रुपये के रक्षा उपकरण बनाना है।”

देश आयात पर अपनी निर्भरता कम करेगा और एक डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉम्प्लेक्स बनाएगा जो न केवल भारत की जरूरतों को पूरा करेगा बल्कि रक्षा निर्यात की क्षमता को भी मजबूत करेगा।

‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम न केवल देश के रक्षा उत्पादन को मजबूत कर रहा है बल्कि ग्लोबल डिफेंस सप्लाई चेन को मजबूत और लचीला बनाने में भी मदद कर रहा है।

भारत की रक्षा विनिर्माण क्षमताएं राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक स्वायत्तता के उद्देश्य से जुड़ी हैं, साथ ही यह क्षमताएं ‘विनिर्माण’ को ग्लोबल सप्लाई शॉक से भी बचा रही हैं।

भारत आज मिसाइल टेक्नोलॉजी (अग्नि, ब्रह्मोस), सबमरीन (आईएनएस अरिहंत) और विमान वाहक जहाज (आईएनएस विक्रांत) जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विकसित देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है।

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