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भारत और यूरोपीय संघ मिलकर समुद्री प्लास्टिक से बनाएंगे ग्रीन हाइड्रोजन

भारत-ईयू का ग्रीन हाइड्रोजन मिशन: समुद्री प्लास्टिक से समाधान

भारत और यूरोपीय संघ ने समुद्री प्लास्टिक से ग्रीन हाइड्रोजन बनाने की पहल की है। 391 करोड़ रुपए के निवेश से यह पहल टीटीसी के तहत शुरू हुई, जो भारत और ईयू के बीच द्विपक्षीय साझेदारी को मजबूत करती है। यह पहल पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान कर सस्टेनेबल एनर्जी को बढ़ावा देगी।

भारत और यूरोपीय संघ (ईयू) ने दो प्रमुख रिसर्च और इनोवेशन पहलों की शुरुआत की है, जो समुद्री प्लास्टिक कूड़े (एमपीएल) और कचरे से ग्रीन-हाइड्रोजन समाधान से जुड़ी हैं।यह पहल इंडिया-ईयू ट्रेड एंड टेक्नोलॉजी काउंसिल (टीटीसी) के तहत शुरू की गई है। टीटीसी की स्थापना 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने ट्रेड और टेक्नोलॉजी पर द्विपक्षीय साझेदारी को मजबूत करने के लिए की थी।

391 करोड़ रुपए के संयुक्त निवेश के साथ यह पहल समुद्री प्लास्टिक कूड़े (मरीन प्लास्टिक लिटर) और कचरे से ग्रीन हाइड्रोजन (डब्ल्यू2जीएच) के क्षेत्रों में दो कोर्डिनेटेड कॉल पर केंद्रित है। इसे ईयू के रिसर्च एंड इनोवेशन फ्रेमवर्क प्रोग्राम ‘होराइजन यूरोप’ और भारत सरकार द्वारा सह-वित्तपोषित किया गया है। सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर अजय कुमार सूद ने कहा, “सहयोगी रिसर्च ‘इनोवेशन’ की आधारशिला है। ये पहल भारतीय और यूरोपीय शोधकर्ताओं की शक्तियों का इस्तेमाल कर ऐसे समाधान विकसित करेगी, जो हमारी साझा पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करें।”

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भारत में यूरोपीय संघ के राजदूत हर्वे डेल्फिन ने कहा, “ईयू-इंडिया ट्रेड एंड टेक्नोलॉजी काउंसिल के तहत ये रिसर्च पहलें यूरोपीय संघ और भारत साझेदारी की गतिशीलता को प्रदर्शित करती हैं, जिसे फरवरी में दिल्ली में हमारे लीडर्स ने रिन्यू किया था।”डेल्फिन ने बताया, “समुद्री प्रदूषण (मरीन पॉल्यूशन) और सस्टेनेबल एनर्जी जैसे ठोस मुद्दों से एक साथ निपटकर, हम इनोवेशन, सर्कुलर इकोनॉमी और ऊर्जा दक्षता को आगे बढ़ा रहे हैं। इन क्षेत्रों में कटिंग एज टेक्नोलॉजी का विकास आर्थिक और पर्यावरणीय दोनों ही दृष्टि से समझदारी भरा है। हम एक क्लीनर, सस्टेनेबल भविष्य के लिए प्रतिबद्ध हैं जो यूरोपीय संघ और भारत दोनों को फायदा पहुंचाएगा।”

वैश्विक प्रयासों के बावजूद, समुद्री प्रदूषण जैव विविधता को खतरे में डाल रहा है, इकोसिस्टम को बाधित कर रहा है और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम. रविचंद्रन ने कहा, “समुद्री प्रदूषण एक वैश्विक चिंता का विषय है, जिसके लिए सामूहिक कार्रवाई की जरूरत है। यह संयुक्त आह्वान हमें अपने समुद्री इकोसिस्टम की रक्षा के लिए एडवांस टूल्स और रणनीति विकसित करने में सक्षम बनाएगा।”

दूसरा कोर्डिनेटेड कॉल वेस्ट-टू-ग्रीन हाइड्रोजन टेक्नोलॉजीज के विकास के जरिए सस्टेनेबल एनर्जी सॉल्यूशन की तत्काल जरूरत को संबोधित करता है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के सचिव संतोष कुमार सारंगी ने कहा, “वेस्ट से हाइड्रोजन टेक्नोलॉजीज को आगे बढ़ाना हमारे एनर्जी ट्रांजिशन लक्ष्यों के लिए महत्वपूर्ण है। यह सहयोग सस्टेनेबल हाइड्रोजन उत्पादन विधियों के विकास को गति देगा।”

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