नई दिल्ली : नीति आयोग के सदस्य वी के सारस्वत ने कहा कि कोयला तथा अटकी पड़ी गैस से मेथेनाल का उत्पादन कर देश में हो रहे कच्चे तेल के आयात बिल में 2030 तक 30 से 40 प्रतिशत कमी लाने की योजना बनायी जा रही है। फिलहाल देश में हर साल 6 लाख करोड़ रुपये मूल्य कच्चे तेल का आयात हो रहा है।
मेथेनाल पर गठित कार्यबल की बैठक के बाद सारस्वत ने कहा कि हम मेथेनाल के उपयोग के जरिये वर्ष 2030 तक कच्चे तेल आयात बिल में 30 से 40 प्रतिशत कमी लाना चाहते हैं। यह फिलहाल 6 लाख करोड़ रुपये सालाना है। इस इंधन के लाभ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि देश में अधिक राख वाले कोयले के भारी भंडार को देखते हुए यह बेहतर समाधान लगता है। सारस्वत ने आगे कहा, हम बायोमास को भी मेथेनाल में तब्दील करने की दिशा में काम कर रहे हैं। हमने इस क्षेत्र में 2-3 परियोजनाओं को मंजूरी देने का फैसला किया है। साथ ही हम अटके या फंसे पड़े गैस का भी उपयोग मेथेनाल उत्पादन में करना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि कोयले से मेथेनाल उत्पादन की प्रौद्योगिकी दुनिया में उपलब्ध है।
नीति आयोग के सदस्य ने कहा कि विदेशी प्रौद्योगिकी के आधार पर देश में एक-दो संयंत्र लगाये गये हैं लेकिन वे संयंत्र अधिक राख वाले कोयले के लिये उपयुक्त नहीं है। देश में अधिक राख वाला कोयला है। इसीलिए भारत स्वदेशी प्रौद्योगिकी का विकास कर रहा है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में जलमार्गों में उपयोग होने वाले सभी इंजन मेथेनाल आधारित होंगे। हम इसके लिये अंतरराष्ट्रीय विनिर्माण एजेंसियों के साथ गठजोड़ कर रहे हैं। सारस्वत ने कहा कि इसके अलावा 4500 अश्व शक्ति के रेलवे इंजन में तब्दीली लाकर उसे मेथेनाल से चलने लायक कार्यक्रम चलाया जा रहा है क्योंकि रक्षा क्षेत्र के बाद रेलवे सर्वाधिक मात्रा में डीजल का उपयोग करता है। कार्यबल का मानना है कि रेलवे इंजन के विकास में डेढ़ साल लगेंगे। उन्होंने मेथेनाल का खाना बनाने के इंधन के रूप में उपयोग के बारे में भी बोला। उन्होंने कहा कि कार्यबल एलपीजी में मेथेनाल मिलाने पर गौर कर रहा है।
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