'ट्रेजिडी किंग' दिलीप कुमार का अलग है अंदाज - Punjab Kesari
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‘ट्रेजिडी किंग’ दिलीप कुमार का अलग है अंदाज

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लीप कुमार आज 95 वर्ष के पूरे हो चुके हैं। दिलीप कुमार ने अपने फिल्मी करियर में कई हिट फिल्में दीं। जिन्हें फिल्म जगत कभी भूला नहीं सकता। यहां तक की अभिनेता अमिताभ बच्चन ने भी कहा कि अगर हिन्दी सिनेमा का इतिहास लिखा जाएगा तो वो दिलीप कुमार के पहले और कुमार बाद के दो भागों में लिखा जाएगा। आज दिलीप कुमार उम्रदराज हो गए हैं लेकिन सायरा से उनका प्रेम ज्यों के त्यों ही है। हिंदी सिनेमा में उन्होंने पांच दशकों से भी अधिक समय तक अपने शानदार अभिनय से दर्शकों के दिल पर राज किया। फिल्म जगत से ही उन्हें ट्रेजिडी किंग का नाम मिला और दिलीप साहब राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं। आज उनका जन्मदिन है और आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के अवसर पर उनके कुछ राज।

आखिर क्यों कहा जाता था दिलीप कुमार को ‘ट्रेजिडी किंग’

दिलीप कुमार की पहली फिल्म ‘ज्वार भाटा’ थी, जो 1944 में आई। 1949 में फिल्म ‘अंदाज’ की सफलता ने उन्हें रातों-रात लोकप्रिय बना दिया। इस फिल्म में उन्होंने राज कपूर के साथ काम किया। ‘दीदार’ (1951) और ‘देवदास’ (1955) जैसी फिल्मों में दुखद भूमिकाओं का किरदार निभाया। उनकी भूमिकाओं को देख ऐसा लगता था कि उनके अभिनय से सच्चाई बसी हो। अपनी भूमिकाओं में मशहूर होने की वजह से उन्हें ‘ट्रेजिडी किंग’ के नाम से पहचाने जाने लगा।

पाक ने भी दिलीप कुमार को दिया सर्वोच्च सम्मान

भारतीय फिल्मों के दिलीप कुमार को 1955 में सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, इतना ही नहीं भारत के अलावा दिलीप कुमार को पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘निशान-ए-इम्तियाज’ से भी सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 1960 में उन्होंने फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ में मुगल राजकुमार जहांगीर की भूमिका निभाई। यह फिल्म पहले श्वेत और श्याम थी और 2004 में रंगीन बनाई गई। उन्होंने 1961 में फिल्म ‘गंगा-जमुना’ का खुद निर्माण किया, जिसमें उनके साथ उनके छोटे भाई नसीर खान ने काम किया। उन्होंने रमेश सिप्पी की फिल्म शक्ति में अमिताभ बच्चन के साथ काम किया था। इस फिल्म के लिए उन्हें फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

आखिर दिलीप साहब को क्यों बदलना पड़ा अपना नाम?

दिलीप कुमार के जन्म का नाम यूसुफ खान है। उनका जन्म पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था। अपने पिता व परिवार के साथ वह मुंबई आकर बसे थे। जब दिलीप साहब ने फिल्मों में काम करना शुरू किया तो उन्हें कई लोगों ने यह सलाह दी कि हिन्दी फिल्मों के लिए आपना नाम भी हिन्दी-सा ही होना चाहिए। जिसके बाद उन्होंने अपना नाम यूसुफ खान से बदलकर दिलीप कुमार कर दिया था, ताकि उन्हें हिन्दी फिल्मों में ज्यादा पहचान और सफलता मिल सके।

विवाह के वक्त दिलीप कुमार 44 तो सायरा थी सिर्फ 22

दिलीप कुमार ने अभिनेत्री सायरा बानो से 11 अक्टूबर, 1966 को विवाह किया था। विवाह के समय दिलीप कुमार 44 वर्ष के थे और सायरा बानो महज 22 वर्ष की थीं। बॉलीवुड के प्रेमी जोड़ों की जब भी बात की जाती है तो सायरा बानो और दिलीप कुमार का नाम लोगों की जुबां पर जरूर आता है। आज दोनों ही बुढ़ापे की दहलीज पर हैं। दोनों ही एक-दूसरे का सहारा हैं। सायरा बानो तो उनकी जिन्दगी हैं ही, साथ ही दिलीप साहब ने 1980 में कुछ समय के लिए आसमां से दूसरी शादी भी की थी।

पिता के साथ काम करने वाले दिलीप कैसे पहुंचे बड़े पर्दे तक

बताया जाता है कि वर्ष 1930 में दिलीप साहब का परिवार मुंबई आकर बस गया। वह पिता के साथ फल बेचने में उनकी मदद करवाते थे। 1940 में पिता के साथ कुछ ऐसे मतभेद हुए कि वह पुणे आकर रहने लगे। यहां उनकी मुलाकात एक कैंटीन के मालिक ताज मोहम्मद से हुई, जिनकी मदद से उन्होंने आर्मी क्लब में सैंडविच स्टॉल लगाया। कुछ समय बाद वह फिर से मुंबई लौट आए और इसके बाद उन्होंने पिता की मदद के लिए काम तलाशना शुरू किया। वर्ष 1943 में चर्चगेट में इनकी मुलाकात डॉ. मसानी से हुई, जिन्होंने उन्हें बॉम्बे टॉकीज में काम करने की पेशकश की, इसके बाद उनकी मुलाकात बॉम्बे टॉकीज की मालकिन देविका रानी से हुई। बाद में वह बॉलीवुड के एक अभिनेता बने।

कंटेंट- भारत कपूर

 

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