हिंदी सिनेमा में Meena Kumari की विरासत: उनकी अदाकारी, कविताएं और अमर किरदार - Punjab Kesari
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हिंदी सिनेमा में Meena Kumari की विरासत: उनकी अदाकारी, कविताएं और अमर किरदार

अमर किरदारों की मूरत मीना कुमारी का जादू

हिंदी सिनेमा में मीना कुमारी का नाम बेहतरीन अदाकारी के लिए हमेशा याद किया जाता है। उनकी गहरी आंखें और भावनात्मक अभिव्यक्ति ने उन्हें ‘ट्रेजडी क्वीन’ का खिताब दिलाया, जो उनके जीवन और फिल्मों दोनों में संघर्षों की कहानी कहता है।

हिंदी सिनेमा में जब भी बेहतरीन अदाकारी की बात होती है, तो एक नाम हमेशा लिया जाता है – मीना कुमारी। अपनी शानदार एक्टिंग, गहरी आंखों और भावनात्मक अभिव्यक्ति के लिए पहचानी जाने वाली मीना कुमारी ने बॉलीवुड में एक खास मुकाम हासिल किया। उन्हें ‘ट्रेजडी क्वीन’ के नाम से जाना जाता है, क्योंकि उनकी फिल्मों के साथ-साथ उनकी निजी जिंदगी भी संघर्षों से भरी रही।

शुरुआती जीवन और फिल्मी करियर

मीना कुमारी का असली नाम महजबीं बानो था। उनका जन्म 1 अगस्त 1933 को मुंबई में हुआ था। उनके पिता अली बख्श एक थिएटर कलाकार थे, जबकि उनकी मां इकबाल बेगम भी एक कलाकार थीं। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण मीना कुमारी को बहुत छोटी उम्र में ही फिल्मों में काम करना पड़ा। महज चार साल की उम्र में उन्होंने फिल्म ‘लेदरफेस’ (1939) से बतौर बाल कलाकार अपने करियर की शुरुआत की। उनकी मासूमियत और बेहतरीन अदाकारी ने जल्द ही फिल्म निर्माताओं का ध्यान खींचा। धीरे-धीरे उन्होंने अपनी जगह बना ली और बड़ी फिल्मों में काम मिलने लगा।

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सबसे बड़ी स्टार बनने की राह

1950 के दशक तक मीना कुमारी हिंदी सिनेमा की सुपरस्टार बन चुकी थीं। उनकी पहली बड़ी सफलता फिल्म ‘बैजू बावरा’ (1952) से मिली। इसके बाद उन्होंने ‘परिणीता’ (1953), ‘एक ही रास्ता’ (1956), ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ (1960), ‘साहिब बीबी और गुलाम’ (1962), और ‘काजल’ (1965) जैसी कई हिट फिल्में दीं। उनकी खासियत थी आंखों और आवाज से भावनाओं को बयां करने की क्षमता। उनके अभिनय में एक गहराई थी, जो दर्शकों के दिलों को छू जाती थी। यही वजह थी कि उन्हें ‘ट्रेजडी क्वीन’ कहा जाने लगा।

‘पाकीजा’ – मीना कुमारी की सबसे यादगार फिल्म

 मीना कुमारी की सबसे प्रसिद्ध फिल्म ‘पाकीजा’ (1972) थी। इस फिल्म को बनने में लगभग 16 साल लगे थे। कमाल अमरोही द्वारा निर्देशित इस फिल्म में मीना कुमारी ने साहिबजान का किरदार निभाया, जो आज भी सिनेमा प्रेमियों के दिलों में बसा हुआ है। फिल्म की रिलीज़ से कुछ हफ्ते पहले ही मीना कुमारी की तबीयत बहुत खराब हो गई थी। कहा जाता है कि वह सिर्फ इसलिए जिंदा थीं ताकि ‘पाकीजा’ की रिलीज़ देख सकें। जब फिल्म हिट हुई, तो उन्होंने अपने आखिरी दिनों में इसे देखने के बाद कहा था – “अब मैं चैन से मर सकती हूँ।”

मीना कुमारी का निजी जीवन – संघर्षों से भरा सफर

मीना कुमारी की जिंदगी जितनी खूबसूरत पर्दे पर दिखती थी, असल जीवन में उतनी ही दर्दभरी थी। उन्होंने लेखक-निर्देशक कमाल अमरोही से शादी की, लेकिन यह रिश्ता ज्यादा समय तक नहीं चला। उनके अलगाव ने उन्हें तनाव और अकेलेपन की ओर धकेल दिया। जिसके बाद उन्होंने अपने दर्द को दूर करने के लिए शराब का सहारा लिया। धीरे-धीरे, उनकी सेहत पर इसका बुरा असर पड़ने लगा। लिवर सिरोसिस नाम की बीमारी के चलते उनकी हालत बिगड़ती चली गई।महज 38 साल की उम्र में, 31 मार्च 1972 को मीना कुमारी का निधन हो गया। उनकी मौत से पूरी फिल्म इंडस्ट्री सदमे में आ गई। एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री, जो पर्दे पर अपनी अदाकारी से जादू बिखेरती थी, असल जिंदगी में इतनी तकलीफें झेल रही थी कि वक्त से पहले ही दुनिया छोड़ गई।

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मीना कुमारी की विरासत

मीना कुमारी ने अपने करियर में तीन बार फिल्मफेयर अवॉर्ड जीते और अपनी फिल्मों के जरिए हिंदी सिनेमा को अमूल्य योगदान दिया। उनकी फिल्मों और डायलॉग्स आज भी लोगों की यादों में बसे हुए हैं। उनकी अदाकारी, उनकी आवाज और उनके दर्द भरे किरदार उन्हें हमेशा अमर बनाए रखेंगे। मीना कुमारी सिर्फ एक अभिनेत्री नहीं, बल्कि एक एहसास थीं, जो आज भी हिंदी सिनेमा प्रेमियों के दिलों में ज़िंदा हैं।

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