Partition of Bihar : बिहार की राजनीति की गर्माहट बढ़ गई है। एनडीए विकास और सुशासन की बात कर जनता को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के जंगल राज की याद दिलाता है। दूसरी ओर राजद मुस्लिम-यादव (एमवाई) से हटकर ए-टू-जेड की पार्टी बनने पर जोर रहा है। इधर, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव राजद का एक और चेहरा सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें नौकरी/ रोजगार, जातीय जनगणना, आरक्षण जैसे मुद्दे शामिल हैं। वहीं, तेजस्वी की मां एवं पूर्व सीएम नया ट्विस्ट ले आई हैं। हालांकि, इसके पीछे राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का दिमाग माना जा रहा है। बता दें, पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी ने वर्षों बाद फिर मैथिली भाषी लोगों के लिए अलग मिथिलांचल राज्य की मांग कर भाजपा को चौंकाया है। राबड़ी ने तर्क भी दिया है कि प्रदेश की एक तिहाई आबादी मैथिली बोलती है, इसलिए मिथिलांचल के विकास के लिए जरूरी है कि इसे अलग राज्य का दर्जा दिया जाए। राबड़ी ने बिहार विधान परिषद में 2018 में भी यह मांग कर चुकी हैं।
बीजेपी को उसकी पुरानी चाल से मात देना चाहते हैं लालू
पूर्व मुख्यमंत्री की यह मांग चर्चा में है, क्योंकि उनके पति पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव बिहार-झारखंड बंटवारे के खिलाफ थे। उन्होंने सदन में कहा था कि बिहार-झारखंड का बंटवारा मेरी लाश पर होगा। वर्ष 2000 में लोकसभा में गहमा-गहमी थी। तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी बिहार पुनर्गठन विधेयक पेश करने वाले थे। इसके माध्यम से बिहार से अलग कर झारखंड राज्य बनाया जाना था। लालू इसके विरोध में थे। इस चाल में कांग्रेस एक कदम आगे चली। कांग्रेस ने झारखंड राज्य के निर्माण को सहमति दे दी। यहीं लालू की राजनीतिक बाजी उलट गई। वो चाहकर भी कुछ कर नहीं सकते थे। तब राजद कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में नहीं थी। दूसरी ओर बिहार में कांग्रेस के समर्थन से राबड़ी सरकार चल रही थी। अब लग रहा कि लालू बीजेपी को उसकी पुरानी चाल से मात देना चाहते हैं।
मिथिलांचल में बढ़ा है भाजपा का प्रभाव
हाल के वर्षों में मिथिलांचल में भाजपा का प्रभाव काफी बढ़ा है। इससे राजद की राजनीति काफी प्रभावित हो रही है। दरभंगा एम्स निर्माण ने मिथिलांचल को भाजपा के प्रभाव में ला दिया है। एयरपोर्ट के जरिए मिथिलांचल में अलग क्रांति आ चुकी है, जिसका श्रेय भाजपा को ही जाता दिख रहा। बता दें, केंद्र सरकार ने हाल में मैथिली भाषा में संविधान का अनुवाद करवाया है, जिसका प्रभाव भी भाजपा की राजनीति पर पॉजिटिव पड़ा है। इस खास समय में राजद का एमवाई समीकरण टूट रहा है, इसलिए वो मिथिला के लोगों को अपने पाले में लाना चाह रहे हैं।
पूर्व सभापति भी कर चुके हैं अलग राज्य की मांग
भाजपा की ओर से पूर्व सभापति ताराकांत झा भी मिथिलांचल राज्य की मांग कर चुके हैं। वैसे झारखंड के साथ-साथ मिथिलांचल राज्य की भी मांग उठी थी। मगर, विधिवत स्वरूप के साथ मिथिलांचल राज्य की मांग अगस्त 2004 में भाजपा नेता ताराकांत झा ने की थी। उस वक्त ताराकांत ने संवाददाता सम्मेलन कर मिथिला राज्य की मांग करते आंदोलन की रूपरेखा तैयार की थी। उन्होंने हस्ताक्षर अभियान भी चलाया था। भाजपा सांसद रहे कीर्ति झा आजाद ने भी 2015 में मिथिला राज्य की मांग की थी। उन्होंने संसद में यह मुद्दा उठाया था। 2019 में बीजेपी के तीन नेताओं-गोपाल ठाकुर (दरभंगा से सांसद), अशोक कुमार (मधुबनी से सांसद) और संजय सरावगी (दरभंगा से विधायक) ने भी मिथिला राज्य की मांग उठाई थी।