19 अगस्त को कैमूर में जल सत्याग्रह आंदोलन करेगी: कॉफ्फेड - Punjab Kesari
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19 अगस्त को कैमूर में जल सत्याग्रह आंदोलन करेगी: कॉफ्फेड

बिहार राज्य मत्स्यजीवी सहकारी संघ (कॉफ्फेड) ने जल संसाधन विभाग और पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग को आगाह

पटना। बिहार राज्य मत्स्यजीवी सहकारी संघ (कॉफ्फेड) ने जल संसाधन विभाग और पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग को आगाह किया है कि मछुआरों के हितों से खिलवाड़ न करें वे सरकारी नियमों को ताक पर रखकर राज्य के जलाशयों की खुली डाक से बंदोबस्ती करना बंद करें। कॉफ्फेड पूरे बिहार में जल सत्याग्रह आंदोलन करेगा और इसकी शुरूआत 19 अगस्त को कैमूर में दुर्गावती जलाशय से की जाएगी। 
कॉफ्फेड के प्रबंध निदेशक ऋषिकेश कश्यप ने कहा कि नीतीश सरकार बिहार जलकर प्रबंधन अधिनियम का उल्लघन कर रही है। बिहार जलकर प्रबंधन अधिनियम के अनुसार सभी जलाशयों को प्रखण्ड स्तरीय मछुआ समितियों के साथ बन्दोबस्त करने का प्रावधान है, लेकिन पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग जलाशयों, तालाबों एवं सदाबहार नदियों की बन्दोबस्ती खुली डाक से कर रहा है। जो नियमों का घोर उल्लंघन है। इसका सीधा प्रभाव मछुआरों पर पड़ रहा है। उससे राज्य के गरीब मछुआ (निषाद जाति) के लोग भुखमरी कि शिकार हो रहे है। बिहार जलकर प्रबंधन अधिनियम मछुआरों की जीविका को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था लेकिन राज्य सरकार की गलत नीतियों का खामियाजा प्रदेश के गरीब मछुआ समाज को भुगतना पड़ रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हाल में कैमूर में देखने को मिला वहाँ के प्रसिद्ध दुर्गावती एवं जगदहवा (कोहिरा) जलाशय की बंदोबस्ती हेतु पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग ने खुली डाक की प्रक्रिया शुरू कर दिया है। यह गरीब मछुआरों की जीविका पर आघात है।
कश्यप ने सरकार से आग्रह किया है कि जल्द से जल्द स्थानीय जगदहवा (कोहिरा) एवं दुर्गावती जलाशयों सहित प्रदेश के अन्य जलाशयों को मत्स्यजीवी सहयोग समिति के साथ बंदोबस्त किया जाए। इसी तरह पिछले वर्ष ओढ़नी जलाशय का भी बंदोबस्ती के लिए जल संसाधन विभाग की ओर से खुली डाक से व्यवस्था की थी। बिहार राज्य मत्स्यजीवी सहकारी संघ ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि सरकार द्वारा बनाये गए कानून की रक्षा करें और मछुआरों के जीविका हेतु दुर्गावती, जगदहवा (कोहिरा) एवं ओढ़नी सहित विभाग के अन्य जलाशयों को मछुआ समितियों को सौपें ताकि प्रदेश के गरीब मछुआ समाज मत्स्य पालन कर अपनी आजीविका की रक्षा करते हुए प्रदेश को मत्स्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बना सकें। मालूम हो कि अभी भी बड़ी मात्रा में मछली आध्रप्रदेश एवं अन्य राज्यों से प्रदेश में आ रही है। वही दूसरी ओर राज्य के गरीब मछुआ जीविका की खोज में अन्य राज्यों में पलायन कर रहे है।

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