पटना: इस बार बिहार विधान परिषद का चुनावी परिणाम काफी रोचक रहा है। कई ऐसे लोग रहे जो लगातार राजनीतिक षड्यंत्र के शिकार हो रहे थे और अंतः अपनी जमीनी राजनीति की बदौलत इस चुनाव में अप्रत्याशित परिणाम दिया। छपरा- मोतिहारी की सीट इस मायने में बिल्कुल अप्रत्याशित रही। हम पूर्वी चंपारण की चर्चा करे तो यहां जीते हुए उम्मीदवार महेश्वर सिंह जो डेढ़ दशक से राजनीतिक षड्यंत्र के शिकार हो रहे थे।
भाजपा , जनता दल यू और राजद में इन्हें उचित सम्मान ना मिलने और धोखा के कारण लगातार हार का सामना करना पड़ा। लेकिन अपनी जमीनी पकड़ को और मजबूत कर और लगातार अपनी सामर्थ्य के अनुसार लोगों की सेवा करते रहना महेश्वर सिंह के लिए वरदान साबित हो गया। परिणाम के अनुसार उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वियों को 271 मत से मात दी। राजद द्वारा विधान परिषद चुनाव की तैयारी करने को निर्देश के बाद लगातार जनसंपर्क करने के बाद धोखा मिलना उनके लिए लकी साबित हो गया ।
समाज सेवा का मिला फल : महेश्वर सिंह
आज अपनी अप्रत्याशित जीत पर नवनिर्वाचित विधान परिषद सदस्य महेश्वर सिंह ने कहा कि सच्चा सेवक वही है जो हार कर भी लगातार जनता की सेवा करते रहे हमारी जीत सच्चाई और स्वाभिमान की जीत है। आज मेरे सम्मान को जनता के द्वारा चुने गए स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा सूद सहित सम्मान लौटाया गया ।जिसका हम आभार प्रकट करते हैं। हम इस ऐतिहासिक जीत का श्रेय चंपारण की मिट्टी को देते हैं यहां के जनप्रतिनिधियों को देते हैं।
जिन्होंने अपने जिले के सेवा सम्मान और स्वाभिमान की लाज रखी। उन्होंने यह भी कहा कि हमें सभी लोगों का साथ मिला यहां तक की महागठबंधन और एनडीए के नेताओं और कार्यकर्ताओं का भी साथ मिला। मेरा साथ केवल सम्मान और स्वाभिमान के लिए दिया था ,यह चंपारण की धरती की लगातार आवाज थी। हमने कभी भी इस चुनाव में सत्ता और विपक्ष के नाम पर लड़ाई नहीं लड़ी। यह चुनाव तो केवल जनप्रतिनिधियों की आवाज हक के लिए ही था जहां उनकी आत्मस्वाभिमान की बात थी।
उन्होंने कहा मेरे राजनीतिक जीवन में कभी मुझ पर मुकदमा नहीं हुआ फिर भी कई लोगों ने सवाल खड़े किए मुझे भी जाति के बंधन में बांधने की कोशिश की परंतु हम उस जाति के हैं जहां का मूल कर्म और सिद्धांत सेवा ही है और मानव सेवा ही है। बढ़ती उम्र को लेकर भी लोगों ने मेरे राजनीतिक सेवा पर प्रश्नचिन्ह लगाया, उन्हें बस इतना ही कहूंगा की राणा सांगा और बाबू वीर कुंवर सिंह से हमने सीखा है – “हक के लिए लड़ना मानवता के लिए जीतना और मानव के लिए सेवा करना”। अब सदन में केवल आवाज ही उठेगी , और हक भी मिलेगा।