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Odisha कांग्रेस विधायक भ्रष्‍टाचार मामले में को सुप्रीम कोर्ट से राहत, सजा माफ़

Mohammed Hakim

Oddisha: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ओडिशा के कांग्रेस विधायक मोहम्मद मोकिम को भ्रष्‍टाचार मामले में बड़ी राहत देते हुए 1.50 करोड़ रुपये के ऋण घोटाले मामले में उनकी सजा को निलंबित कर दिया।

Highlights:

  •  उड़ीसा से कांग्रेस के विधायक मोहम्मद हाकिम को भ्रष्‍टाचार मामले में सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत
  •  1.50 करोड़ रुपये के ऋण घोटाले मामले में उनकी सजा को किया गया 

 

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने मोहम्मद मोकिम की उड़ीसा हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई की।

पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम निर्देश में कांग्रेस विधायक को सुनवाई की अगली तारीख तक आत्मसमर्पण करने से छूट दे दी थी।
इससे पहले उड़ीसा हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति बीआर राउत्रे की पीठ ने कहा था, सजा की सीमा और अपराध की प्रकृति के साथ-साथ अपीलकर्ता द्वारा निभाई गई भूमिका को देखते हुए, उसे विशेष सतर्कता अदालत द्वारा दी गई सजा में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं पाया गया।

पहले सुनाई गयी थी तीन साल गयी थी

सितंबर 2022 में भुवनेश्वर की एक विशेष सतर्कता अदालत ने मामले में कांग्रेस विधायक मोकिम, पूर्व आईएएस अधिकारी विनोद कुमार, ओडिशा ग्रामीण आवास विकास निगम (ओआरएचडीसी) कंपनी के पूर्व सचिव स्वोस्ति रंजन महापात्र और मेट्रो बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक पीयूषधारी मोहंती को दोषी ठहराया और उन्हें तीन साल जेल की सजा सुनाई।

विजिलेंस (सतर्कता) अधिकारियों के अनुसार, विनोद कुमार और स्वोस्ति रंजन ने 2000 में भुवनेश्वर के नयापल्ली में 50 फ्लैटों के निर्माण के लिए मेट्रो सिटी-2 परियोजना के लिए मेट्रो बिल्डर्स को 1.50 करोड़ रुपये का ऋण स्वीकृत किया था।

तीन किस्तों में ऋण किया गया था स्वीकृत

मोकिम उस समय मेट्रो बिल्डर्स के प्रबंध निदेशक थे। विनोद कुमार के निर्देश पर तीन किस्तों में ऋण स्वीकृत एवं वितरित किया गया था।
अधिकारियों ने कहा कि मेट्रो बिल्डर्स की ओर से मोहंती द्वारा ऋण समझौते और अन्य संबंधित दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए थे। हालांकि, उस समय ओआरएचडीसी के निदेशक मंडल द्वारा विनोद कुमार को ऋण की मंजूरी और वितरण के लिए कोई वित्तीय शक्ति नहीं सौंपी गई थी, लेकिन उन्होंने महापात्र के साथ मिलकर बिल्डर पर अनुचित पक्षपात दिखाकर जल्दबाजी में ऋण राशि स्वीकृत और वितरित कर दी थी।
इसके अलावा, ऋण प्रस्ताव को अप्रूवल के लिए न तो निदेशक मंडल और न ही ऋण समिति के सामने पेश किया था। इसे भी बिना किसी स्पॉट साइट सत्यापन के मंजूरी दे दी गई थी।

 

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