पटना: पूर्व विधान पार्षद एवं जद (यू )प्रदेश प्रवक्ता प्रो. रणबीर नंदन ने केंद्र सरकार की ओर से करोड़ो भारतीयों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए वितरित किए जाने वाले फोर्टिफाइड राइस पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को इस चावल की गुणवत्ता के सभी परीक्षणों के बाद ही गरीबों के बीच वितरित किया जाना चाहिए। फोर्टिफाइड राइस के कारण बच्चों की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ने की रिपोर्ट का हवाला देते हुए प्रो. नंदन ने कहा कि बच्चों और अन्य लोगों की सेहत को प्राथमिकता सूची में रखा जाना जरूरी है। प्रो. नंदन ने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से जब सेहतमंद चावल के वितरण की बात कही थी तो लगा था कि एनीमिया जैसे रोग से निपटने में यह प्रभावी कदम होगा। हालांकि, फोर्टिफाइड चावल को लेकर जारी चेतावनी और टेस्ट रिपोर्ट का इंतजार नहीं किया गया और फोर्टिफाइड राइस के आपूर्ति की घोषणा कर दी गई। केंद्र सरकार की ओर से एनीमिया की बढ़ती घटनाओं को कम करने के लिए कल्याणकारी योजनाएं चलाई गईं। हालांकि, इसके तहत 137.74 लाख टन फोर्टिफाइड राइस का आवंटन कर दिया गया।
प्रो. नंदन ने कहा कि बिना पूरी जांच के इस आवंटन का असर सामने आया है। कई रिपोर्ट्स में खुलासा हुआ है कि देश में 17 लाख बच्चे फोर्टिफाइड राइस खाने के बाद कुपोषित हुए हैं। एक अनुमान के मुताबिक, 5 साल से कम आयु के 67.1 फीसदी बच्चे और 15 से 49 वर्ष आयु वर्ग की 57 फीसदी महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। स्वास्थ्य विभाग की ओर से इस पर चिंता जताई गई है। केंद्र सरकार को इस विषय में अब गंभीरता से सोचना होगा। वर्ष 2015-16 की तुलना में वर्ष 2019-2021 में बच्चों में खून की कमी के मामले 9 फीसदी वृद्धि का आंकड़ा चौंकाने वाला है। प्रो. रणबीर नंदन ने कहा कि आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन बी-12 से युक्त फोर्टिफाइड राइस के जरिए लोगों को पोषक भोजन की योजना थी। इसके परिणाम उलट हैं। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि फोर्टिफाइजेशन महीन पोषक तत्वों का लॉन्ग टर्म समाधान नहीं हो सकता है। केंद्र सरकार को ऐसी योजना तैयार करनी होगी कि बच्चों और गरीबों को अलग-अलग प्रकार के आहार उचित मूल्य पर मिल सकें। उन्होंने कहा कि फोर्टिफाइड राइस प्रोजेक्ट शुरू से ही विवादों में रही है।प्रो. नंदन ने कहा कि 2019 में पायलट प्रोजेक्ट शुरू होने से लेकर 2021 में इसके वितरण तक की घोषणा पर सवाल उठे। पायलट प्रोजेक्ट की असफलता पर केंद्रीय खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के पूर्व सचिव का बयान सामने है। उन्होंने असफलता का कारण मूलभूत समस्याएं बताईं। नीति आयोग के वरिष्ठ सलाहकार भी कह चुके हैं कि पायलट प्रोजेक्ट बहुत सफल नहीं हुए। प्रो. नंदन ने कहा कि केंद्र सरकार को स्थितियों को देखते हुए एनीमिया से निपटने के लिए सभी राज्यों की राय अवश्य लेनी चाहिए, क्योंकि यह मुद्दा स्वास्थ्य से जुडा मुद्दा है!