सर्वसमृद्धि प्रदायक और कठोर संयम का दूसरा नाम छठ पूजा : बाबा भागलपुर - Punjab Kesari
Girl in a jacket

सर्वसमृद्धि प्रदायक और कठोर संयम का दूसरा नाम छठ पूजा : बाबा भागलपुर

फल और पकवानों को घर.परिवार और समाज में प्रसाद स्वरूप वितरण कर व्रति स्वयं ग्रहण कर व्रत को

भागलपुर : छठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी और सप्तमी तिथि को मानाया जाने वाला सनातनी पर्व है। इस संबंध में राष्ट्रीय सम्मान से अलंकृत व अखिल भारतीय स्तर पर ख्याति प्राप्त ज्योतिष योग शोध केन्द्रए बिहार के संस्थापक दैवज्ञ पं. आर. के. चौधरी बाबा.भागलपुर, भविष्यवेता एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ ने शास्त्रोक्त मतानुसार बतलाया कि छठ पर्व सूर्योपासना का अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वोत्तर भारत के बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेशए उत्तराखंड और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। इस पर्व में बहुत सारी सावधानियां बरती जाती है तथा कठोर नियम और संयम इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

छठ पर्व में कोई मूर्ति पूजा शामिल नहीं है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक मास में। चैत शुक्ल पक्ष षष्ठी और सप्तमी तिथि को मनाये जाने वाले इस पर्व को चैती छठ और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी व सप्तमी तिथि को मनाये जाने वाले छठ पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पंचांगों के अनुसार हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी कार्तिकी छठ निम्नांकित क्रम से मनाया जाएगा। 11 नवम्बर 2018, रविवार-नहाय खाय, 12 नवम्बर 2018, सोमवार, खरना, 13 नवम्बर 2018,मंगलवार, शाम का अघ्र्य, 14 नवम्बर 2018, बुधवार सुबह का अघ्र्य।

पारिवारिक सुख.समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैं। छठ व्रत के संबंध में अनेक पौराणिक कथायें प्रचलित है, उनमें एक कथानुसार जब पाण्डव अपना सारा राज-पाट जुए में हार गये तब श्रीकृष्ण द्वारा बतलायें जाने पर द्रौपदी ने छठी व्रत रखा। तब उनकी मनोकामनायें पूर्ण हुई तथा पाण्डवो को राज-पाट वापस मिला। इस पर्व को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाय तो षष्ठी तिथि को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है।

इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती है जिसके कारण सम्भावित कुप्रभावों से मानव की यथा संभव रक्षा करने का सामथ्र्य प्राप्त होता है। छठ पर्व चार दिनों का होता है। भाई दूज के तीसरे दिन से यह आरम्भ होता है। पहले दिन नहाय खाय में सिन्धा नमकए गाय के घी से बना हुआ कद्दू की सब्जी और अरवा चावल का भात प्रसाद के रूप में लिया जाता है। अगले दिन खरना से व्रत आरम्भ होता है।

व्रति दिन भर अन्न-जल त्याग कर शाम में खीर बनाती है तथा पूजन करने के बाद प्रसाद स्वरूप सामाजिक रूप से वितरण करके स्वयं ग्रहण करती है। तीसरे दिन डूबते हुये सूर्य को अघ्र्य-गाय की दूध सेद्ध से अर्पित करते हैं। व्रति और श्रद्धालु सूर्य को डाला चढाते हैं जिसमें अनेकों प्रकार के फल और घर में बने पकवान को शामिल करते हैं तथा अंतिम दिन उगते हुये सूर्य को अघ्र्य देते हैं इसके बाद पूजन क्रिया पूर्ण कर डाले में रखे गये फल और पकवानों को घर.परिवार और समाज में प्रसाद स्वरूप वितरण कर व्रति स्वयं ग्रहण कर व्रत को तोड़ते है। यह है छठ व्रत की सम्पूर्ण कथा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

18 − sixteen =

Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।