बिहार : गोवर्धन पूजा, आज की पौराणिक मान्यता - Punjab Kesari
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बिहार : गोवर्धन पूजा, आज की पौराणिक मान्यता

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पटना : दीपावली के ठीक अगले दिन यानी आज गोवर्धन पूजा मनाया जा रहा है।  इसके बाद 9 नवंबर  को भाई दूज और चित्रगुप्त पूजा का त्योहार मनाया जायेगा। गोवर्धन पूजा को  अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। हिंदू धर्म में गाय को पूजनीय माना गया है।

शास्त्रों के अनुसार गाय गंगा नदी के समान पवित्र होती है. यहां तक गाय को मां लक्ष्मी का रूप भी माना जाता है। कहा जाता है भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाकर रखा था, जिसके नीचे सभी गोप और गोपिकाओं ने आश्रय लिया था।

गोबर से गोवर्धन की आकृति तैयार करने के बाद उसे फूलों से सजाया जाता है और इसकी पूजा की जाती है। पूजा में धूप, दीप, दूध नैवेद्य, जल, फल, खील, बताशे का इस्तेमाल किया जाता है। कहा जाता है कि गोवर्धन पर्व के दिन मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन, लोग घरों में प्रतीकात्मक तौर पर गोवर्धन बनाकर उसकी पूजा करते हैं और उसकी परिक्रमा करते हैं।

गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं, उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। गोवर्धन पूजा के दौरान विभिन्न तरह के पकवान बनाए जाते हैं। लोग घरों में गोवर्धन पूजा के दिन पूजा-अर्चना के बाद अन्नकूट का प्रसाद ग्रहण करते हैं।

प्राचीन धर्म ग्रन्थों के मुताबिक, गोवर्धन पूजा को द्वापर युग से चली आ रही है। इसके पीछे मान्यता यह है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इंद, की पूजा की बजाय गोवर्धन की पूजा शुरू करवाई थी, जिसके बाद दीवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। महिलायें घर के आंगन में गोवर्धन बनाकर पूजा करती हैं। इस दिन गोवंश की सेवा का विशेष महत्व है। इसलिए लोग बैल, गाय सहित अपने वाहनों की भी पूजा करते हैं। गाय-बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है और उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है।

गोवर्धन पूजा को लेकर कहानी है कि जब भगवान कृष्ण ने देखा कि सभी बृजवासी इंद, की पूजा कर रहे थे। जब उन्होंने अपनी मां को भी इंद, की पूजा करते हुए देखा तो सवाल किया कि लोग इन्द, की पूजा क्यों करते हैं। उन्हें बताया गया कि वह वर्षा करते हैं, जिससे अन्न की पैदावार होती और हमारी गायों को चारा मिलता है। तब श्री कृष्ण ने कहा ऐसा है तो सबको गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गायें तो वहीं चरती हैं।

भगवान श्रीकृष्ण की बात मानकर सभी ब्रजवासी इंद, की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। देवराज इन्द, ने इसे अपना अपमान समझा और प्रलय के समान मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा कर ब्रजवासियों की भारी बारिश से रक्षा की थी।

भगवान इंद, को जब पता लगा कि श्री कृष्ण वास्तव में विष्णु के अवतार हैं तो उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ। बाद में इंद, देवता को भी भगवान कृष्ण से क्षमा याचना करनी पड़। इन्द्रदेव की याचना पर भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और सभी ब्रजवासियों से कहा कि अब वे हर साल गोवर्धन की पूजा कर अन्नकूट पर्व मनाए। भगवान कृष्ण ने कहा था कि गोवर्धन पर्वत गौधन का संरक्षण करता है, जिससे पर्यावरण भी शुद्ध होता है। इसलिए, गोवर्धन पर्वत की पूजा की जानी चाहिए और तब से ही यह पर्व गोवर्धन के रूप में मनाया जाता है।

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