वर्ण व्यवस्था और मनुस्मृति से प्रभावित है भीमराव अम्बेडकर के विचार : जे.एन. त्रिवेदी - Punjab Kesari
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वर्ण व्यवस्था और मनुस्मृति से प्रभावित है भीमराव अम्बेडकर के विचार : जे.एन. त्रिवेदी

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जयन्ती पर विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा मनाए गए जयन्ती समारोह में जिन्होंने वर्णव्यवस्था, मनुस्मृति

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जयन्ती पर विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा मनाए गए जयन्ती समारोह में जिन्होंने वर्णव्यवस्था, मनुस्मृति के विरुद्ध अपने पूर्वाग्रह का परिचय दिया है, उसका प्रतिवाद करते हुए वसुधैव कुटुम्बकम परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.एन. त्रिवेदी ने कहा कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर सच्चे सनातन धर्मी  थे इसीलिए उन्होंने कहा था ‘ मुझे वह धर्म पसन्द है जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सिखाता है। संविधान के प्रति उनके दृष्टिकोण के रूप में इस पर विचार करना चाहिए। मनुस्मृति जलाकर भी बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने उसी धर्म का समर्थन अपने विचार में किया जो मनुस्मृति में है। बाबा साहब के विचार में धर्म मनुष्य के हितों की रक्षा के लिए है, मनुष्य धर्म के लिए नहीं है। मनुस्मृति में मनुष्य के लिए धर्म की ही चर्चा है। इसीलिए मनुस्मृति को मानव शास्त्र कहा गया है। छुद्र संकल्प वाले स्वार्थ हित में भ्रमित नेताओं को यह भी बताना चाहिए कि अब मनुष्य होने का वह दश लक्षण( क्षमा-धैर्य-दम-अस्तेय-शौच-इन्द्रिय निग्रह-बुद्धि-विद्या-सत्य-अक्रोध) प्रासंगिक नहीं है जो मनुस्मृति में  कहा गया है। मनुस्मृति में जिस वर्ण व्यवस्था की बात कही गयी है वह मानव शक्ति की सम्पूर्ण क्षमता का उपयोग करते हुए प्रजा और राष्ट के सतत अभ्युदय के लिए कहा गया है जो वैज्ञानिक भी है और व्यावहारिक भी है। शास्त्र प्रमाण है कि भारतवर्ष में कभी जाति व्यवस्था नहीं रही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र वर्ण एक संयुक्त परिवार की तरह रहा है। इसीलिए भारत ने विश्व समुदाय पर अपनी शासन व्यवस्था कायम की और  सम्पूर्ण विश्व को एक गाँव के रूप में परिभाषित करके वसुधैव कुटुम्बकम की भावना का परिचय दिया।
आज जनता समझ रही है कि जो नेतृत्व की योग्यता नहीं रखते, जो न ज्ञानी हैं न साधक है न स्वाध्यायी है, उनका उद्देश्य जनता को सन्मार्ग दिखाकर राज्य का भला करना हो ही नहीं सकता। जनता को बेवकूफ समझ कर छुद्र संकल्प वाली राजनीति करते हुए जनता को भ्रमित कर वोट के लिए बाँटने, काटने के सिवाय और कुछ कर ही नहीं सकते। वसुधैव कुटुम्बकम परिषद इस विषय पर गंभीरता पूर्वक काम कर रही है और शीघ्र ही वर्णव्यवस्था और मनुस्मृति की वर्तमान में प्रसङ्गिकता को लेकर आम अवाम के बीच जाने की तैयारी में है। परिषद की  सर्वकल्याण भावना, चिंतन और व्यवहार से बेनकाब होंगे ऐसे सारे नेता, जो युवापीढ़ी को भीमराव अंबेडकर के उन विचारों के बारे में नहीं बताते जिससे प्रेरित होकर लाखों युवा अपना जीवन सुधारने, संवरने और परिवर्तित करने में कस्मयसब हुए। वक्त आने पर वसुधैव कुटुम्बकम परिषद इस दिशा में भी कारगर पहल करेगी।

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